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बढ़ती महंगाई से कोई अछूता नहीं, इस पर लगाम जरूरी

-रूरल वॉइस, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर  थोक बाजारों में मुद्रास्फीति  की दर  नवंबर में 14.23 फीसदी पर पहुंच गई जो  पिछले  कई दशकों  में सबसे ज्यादा है । यह स्थिति  देश के नीति विश्लेषकों और  अर्थशास्त्रियों के अनुसार बहुत बडा झटका देने वाली है लेकिन इस स्थिति से वास्तव  मे नीतिनिर्धारक कितने चिंतित है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।  पिछले आठ महीने से मुद्रास्फीति दहाई  में बनी हुई...

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चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 5.3 प्रतिशत रहने का अनुमान: आरबीआई

-न्यूजक्लिक, मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष 2021-22 में करीब 5.3 प्रतिशत रह सकती है। यह केंद्रीय बैंक के पूर्व अनुमान के अनुरूप है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए कहा कि मुद्रास्फीति के अगले वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में नरम पड़कर पांच प्रतिशत पर आने का अनुमान है।       उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति का अनुमान पूर्व के अनुमान के लगभग अनुरूप है।...

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दक्षिणी राज्यों में भारी बेमौसम बारिश के कारण टमाटर की कीमतें दोगुनी, जल्द राहत की उम्मीद नहीं

-द प्रिंट, सब्जी मंडियों में आने वाले उपभोक्ता एक बार फिर से आंसू बहा रहे हैं लेकिन इस साल गुनहगार प्याज नहीं बल्कि टमाटर है. दक्षिण भारतीय राज्यों में हुई बेमौसम बारिश से आपूर्ति के प्रभावित होने से कई स्थानों पर टमाटर के खुदरा और थोक भाव दोगुने से अधिक बढ़कर 80 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए हैं. विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों के कुछ शहरों में इसकी कीमतें 100 रुपये प्रति...

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क्या हैं अमीर व गरीब देशों के लिए प्राकृतिक संपदा के मायने?

-डाउन टू अर्थ, जिस समय दुनिया वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर क्लाइमेट चेंज के बैनर तले कॉप-26 में कार्बन बजट पर चर्चा करने में व्यस्त थी, ठीक उसी समय एक अन्य मोर्चे पर एक और महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। इस बहस के केंद्र में था कि क्या हम प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग को नियंत्रित कर सकते हैं? यह बहस उस उपभोग...

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महंगाई ले चुकी है स्थायी रूप , शहरी से ग्रामीण तक सभी प्रभावित

-रूरल वॉइस, मंहगाई देश में होने वाले पांच राज्यों मे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक अहम मुद्दा बन चुका है  क्योंकी रोजमर्रा के खर्च में मंहगाई अब हमारे जीवन हिस्सा ही बन गई है।  इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उपभोक्ता मूल्य सूचकां (सीपीआई) या थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) किस तरह के आंकड़े पेश करते हैं।  हकीकत यह है कि इस बार की मंहगाई की जड़े काफी गहरी हैं और ...

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