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रूढ़ियों को तोड़ रहीं डिजिटल महिलाएं-- ओसामा मंजर

पिछले दिनों मेरी मुलाकात लिपिका से हुई। वह असम के सोनापुर की हैं। स्कूली शिक्षा के लिए उन्हें जद्दोजहद तो करनी ही पड़ी, कॉलेज में दाखिला लेने के लिए भी माता-पिता को खूब मनाना पड़ा। कुछ वर्षों पहले उनकी नजर सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र (सीआईआरसी) पर पड़ी। यह सीखने की उनकी ललक है कि आज वह उस केंद्र की कंप्यूटर प्रशिक्षक हैं। वह कहती हैं, मेरी मां ने बताया था...

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लोगों को हुनर सिखाकर बदल सकते हैं समाज-- दशरथ सूर्यवंशी

बरसों से जलसंकट से जूझ रहे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल के उदगीर जिले के रावणकोल में पलते-बढ़ते समय एक अलग ही तरह का सामाजिक बदलाव मेरी नज़र में आया। जल-संकट के कारण उजड़ती खेती के साथ उजड़ते गांव। लोग आजीविका की तलाश में शहर चले जाते। परिवार बिखरते। ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खेती और ग्रामीण व्यवस्था ही नहीं बदल रही है बल्कि सामाजिक मेल-जोल व एकजुटता खत्म हो रही है, क्योंकि घट...

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जननि सुरक्षा- आखिर किधर जा रहा है समाज

चिंता : शहरों में सबसे ज्यादा गर्भपात 20 वर्ष से कम आयुवर्ग की लड़कियों में मां बनना शायद दुनिया की सबसे अद्भुत नैसर्गिक प्रक्रिया है, साथ में सबसे सुखद एहसास भी. जन्म देने का जिम्मा प्रकृति ने एक औरत को शायद इसीलिए दिया है, िक इस काम के लिए जो साहस और कोमलता चाहिए, वह सिर्फ औरत में ही हो सकती है. तमाम कष्टों के बावजूद एक औरत को सबसे ज्यादा...

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इक्कीसवीं सदी दलितों की है-- चंद्रभान प्रसाद

दलितों का महत्व अचानक ही बढ़ गया है, तमाम राजनीतिक पार्टियां डॉ. भीमराव अंबेडकर की परंपरा को अपनाने का दावा करते हुए दलितों के साथ अपनापा स्थापित करने में लग गई हैं। संघ परिवार जैसा दलितों का घनघोर विरोधी संगठन भी अंबेडकर के पक्ष में खड़ा होने लगा है। इन बुनियादी तथ्यों पर जरा नजर दौड़ाइए- 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने 282 सीटें...

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अकेली स्त्री का घर-- क्षमा शर्मा

हमारे समाज में बूढ़ों की दुर्दशा प्रकट है। बहुत से लोग और स्वयंसेवी संगठन संयुक्त परिवार का टूटना इसकी बड़ी वजह बताते हैं, जो कुछ हद तक है भी। हालांकि यह भी समस्या का अधूरा सच है। बूढ़ों को तो हमारे यहां सदियों से वानप्रस्थ में भेजने की व्यवस्था रही है। इसके अंतर्गत राजा को भी हर सुख-सुविधा छोड़ कर जंगल में जाना और अपने प्रयासों से ही भोजन जुटाना...

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