पेटलावद से जितेंद्र यादव। पेटलावद हादसे में 89 निर्दोष लोगों की जान लेने वाले बारूद के पीछे भ्रष्टाचार की एक ऐसी कहानी भी छिपी है जिसके किरदार जिला और जनपद पंचायत के अफसरों से लेकर ग्राम पंचायत के सचिव और सरपंच तक हैं। इस कहानी में ब्लास्टिंग का धंधा करने वाले कांसवा सहित अन्य कारोबारियों का भी सीधा हाथ सामने आ रहा है। झाबुआ जिले में मनरेगा के तहत सरकार की...
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रिपोर्ट में खुलासा : कुपोषण से नहीं उबर पा रहे 44 फीसदी मासूम
शशिकांत तिवारी, भोपाल। प्रदेश में 44 फीसदी बच्चे कुपोषण से नहीं उबर पा रहे हैं। जबकि इन्हें शासन द्वारा पोषण, इलाज समेत सारी सुविधाएं दी जा रही हैं। कई जिलों में तो ऐसे बच्चों की संख्या एक तिहाई तक पहुंच गई है। इस मामले में राजधानी की स्थिति तो और भी बुरी है। यहां पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) में भर्ती बच्चों में से 47 फीसदी ही कुपोषण को मात दे...
More »खुद को मिलने वाली पेंशन से पर्यावरण की सेवा को बनाया मिशन
युवराज गुप्ता, बुरहानपुर। बचपन से प्रकृति व पक्षियों के प्रति रहे लगाव को उन्होंने मिशन में बदल दिया। सरकारी सेवा में बड़े पद से सेवानिवृत्ति के बाद पर्यावरण की सुरक्षा ही उनका एकमात्र ध्येय है। नईदिल्ली से राज्यसभा के रिपोर्टिंग डिपार्टमेंट के पूर्व निदेशक 63 वर्षीय आरसी विरवानी ने तीन सालों में देश के विभिन्न् राज्यों में पर्यावरण सुधार एवं जनसेवा से जुड़े कई कार्य किए। इन कार्यों में अब तक...
More »झाबुआ में बेटियों को नसीब नहीं हो रही गोद
अहद खान/झाबुआ। जिले के पेटलावद में एक शराबी पिता अपनी बेटी को लावारिस छोड़ गया। दूसरी महिला इसका लालन-पालन कर रही है। शायद इस शराबी की संतान यदि बेटा होती तो वो ऐसा नहीं करता। लाख दावों, नारों और कोशिशों के बावजूद बेटियों को परिवार का प्यार नहीं मिल पा रहा। 'बेटी है तो कल है' नारे में ये बात अच्छी लगती है, लेकिन असलियत में उन्हें गोद लेने वाले...
More »आखिर किस कीमत पर विकास? - एमएम बुच
प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि भारत में तीव्र आर्थिक विकास और औद्योगीकरण आवश्यक है, किंतु उत्पादन की गुणवत्ता इतनी ऊंची होनी चाहिए कि विश्व भर में उसकी ख्याति हो। साथ ही विकास एवं औद्योगीकरण पर्यावरण के अनुकूल हो। इस ओर विशेष ध्यान दिया जाए कि विकास के कारण पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े। यूपीए सरकार से यह शिकायत रहा करती थी कि भू-अर्जन नीति...
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