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न्यूज क्लिपिंग्स् | रिपोर्ट में खुलासा : कुपोषण से नहीं उबर पा रहे 44 फीसदी मासूम

रिपोर्ट में खुलासा : कुपोषण से नहीं उबर पा रहे 44 फीसदी मासूम

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published Published on Mar 25, 2015   modified Modified on Mar 25, 2015
शशिकांत तिवारी, भोपाल। प्रदेश में 44 फीसदी बच्चे कुपोषण से नहीं उबर पा रहे हैं। जबकि इन्हें शासन द्वारा पोषण, इलाज समेत सारी सुविधाएं दी जा रही हैं। कई जिलों में तो ऐसे बच्चों की संख्या एक तिहाई तक पहुंच गई है। इस मामले में राजधानी की स्थिति तो और भी बुरी है। यहां पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) में भर्ती बच्चों में से 47 फीसदी ही कुपोषण को मात दे पा रहे हैं। यह खुलासा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की एक रिपोर्ट में हुआ है।

कुपोषित बच्चों में लगभग 12 फीसदी गंभीर होते हैं। ऐसे बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्रों में भर्ती कर इलाज दिया जाता है। इसके लिए प्रदेश में 315 केंद्र बनाए गए हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के जरिए या फिर परिजन सीधे ऐसे बच्चों को लाकर एनआरसी में भर्ती कराते हैं।

यहां इन्हें 14 दिन तक भर्ती कर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मापदंडों के अनुसार पौष्टिक आहार देने का प्रावधान है। इस दौरान हर दिन बच्चों का वजन लेना भी अनिवार्य है। हालत में सुधार होने पर बच्चों को डिस्चार्ज कर दिया जाता है। हालांकि इसके बाद भी उन्हें चार बार फालोअप के लिए लाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में बच्चा कुपोषण से पूरी तरह से मुक्त हो जाना चाहिए, लेकिन प्रदेशभर के 56 फीसदी बच्चे ही इसे मात दे पा रहे हैं।

इन जिलों की खराब स्थिति

जिला बेड भर्ती क्योर रेट (प्रतिशत में)

होशंगाबाद 70 1,151 31

बड़वानी 70 977 40

सागर 68 1,323 40

मंडला 50 822 36

नीमच 50 519 41

भोपाल 40 768 47

इन जिलों की स्थिति बेहतर

झाबुआ 85 1,245 73

छतरपुर 80 1,591 73

कटनी 80 1,285 69

मुरैना 70 1,227 76

ग्वालियर 60 754 69

दतिया 60 733 76

(आंकड़े वर्ष 2013-14 में अप्रैल से जनवरी तक के)

अस्पताल में भर्ती होने वाले बच्चे पर खर्च

परिवहन 100 रुपए

आशा कार्यकर्ता 100 रुपए

बच्चे का भोजन 50 रुपए रोज

बच्चे की मां को भुगतान 70 रुपए रोज

फॉलोअप पर खर्च- 1,210 रुपए

(गंभीर कुपोषित बच्चे को 14 दिन एनआरसी में भर्ती किया जाता है।)

भोपाल में लड़कियों की स्थिति बेहद खराब

राजधानी में जेपी अस्पताल, बैरागढ़, कोलार और पीपुल्स अस्पताल में एनआरसी बनाए गए हैं। यहां 2012-13 में 793 कुपोषित बच्चों को भर्ती कराया गया है। इलाज और फॉलोअप के बाद 40 फीसदी बच्चे तो कुपोषण से उबर गए, लेकिन लड़कियों में महज 20 फीसदी ही ठीक हो पाईं। इसी तरह से 2013-14 में भर्ती होने वाली लड़कियों में 18 फीसदी का कुपोषण दूर हो सका। भोपाल की चारों एनआरसी में पीपुल्स अस्पताल की एनआरसी में क्योर रेट 27 फीसदी और बैरागढ़ में 33 फीसदी है।

प्रदेश में एनआरसी - 315

गंभीर कुपोषित बच्चे - 12 फीसदी

एनआरसी में हर साल भर्ती - करीब 60 हजार

भोपाल में आंगनवाड़ी केंद्र - 1,688

एक केंद्र में बच्चों की संख्या - 30

शहर में कुपोषित बच्चों की संख्या - 44 हजार

मप्र और भोपाल में कुपोषण (प्रतिशत में)

श्रेणी मप्र भोपाल

अंडर वेट- 51.2 55.8 उम्र अनुसार वजन

स्टंटिंग- 48 47.7 उम्र के अनुसार ऊंचाई

वेस्टिंग- 25.8 24.6 ऊंचाई के अनुसार वजन

स्टंटिंग-लंबे समय से गंभीर कुपोषित बच्चों का इससे पता चलता है। कुपोषित मां के बच्चे भी इसी श्रेणी में आते हैं।

अंडर वेट- बीमारी, पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलने से बच्चों का वजन उम्र के अनुसार कम हो जाता है।

वेस्टिंग- बच्चे का उसकी लंबाई के मुताबिक वजन नहीं बढ़ता है।

एनआरसी से सॉफ्टवेयर पर नजर

पहले प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन नहीं हो पा रहा था, इसलिए आउटपुट कम है। अब सॉफ्टवेयर से सभी पोषण पुनर्वास केंद्रों की मॉनिटरिंग की जा रही है। इससे क्योर रेट बढ़ जाएगा।

प्रवीर कृष्ण, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य


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