-द प्रिंट, भारत जब वर्ष 2022 में प्रवेश कर रहा है, नरेंद्र मोदी सरकार के लिए ये कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं- कोविड की नयी लहर, वृहत अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर स्थिरता बनाए रखना, आर्थिक वृद्धि की दर में सुधार के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना. ओमीक्रॉन भारत को कोविड की नयी लहर का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन व्यापक टीकाकरण, वाइरस से लड़ने की क्षमता में वृद्धि और हमारी...
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ग्लोबल उथल पुथल के बीच अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बुनियादी बातों पर भी ध्यान देना जरूरी
-द प्रिंट, दुनियाभर में मौद्रिक नीति में बदलावों के कारण शेयर बाजारों में इन दिनों उथलपुथल चल रही है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने भी मौद्रिक नीति में सामान्यीकरण का संकेत दिया तो रुपये पर दबाव बढ़ गया. पिछले कुछ महीनों से कीमतों में तेजी के कारण कई बड़े देशों के केंद्रीय बैंक सामान्यीकरण की नीति अपनाने लगे हैं. मुद्रास्फीति जब नयी ऊंचाई को छूने लगी तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इस महीने...
More »बढ़ती महंगाई से कोई अछूता नहीं, इस पर लगाम जरूरी
-रूरल वॉइस, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर थोक बाजारों में मुद्रास्फीति की दर नवंबर में 14.23 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले कई दशकों में सबसे ज्यादा है । यह स्थिति देश के नीति विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों के अनुसार बहुत बडा झटका देने वाली है लेकिन इस स्थिति से वास्तव मे नीतिनिर्धारक कितने चिंतित है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। पिछले आठ महीने से मुद्रास्फीति दहाई में बनी हुई...
More »क्यों चंपारण और खेड़ा के किसान आंदोलनों से बड़ा है मौजूदा किसान आंदोलन
-रूरल वॉइस, आज यानी 11 दिसंबर को गुरू ग्रंथ साहिब के पाठ और हवन के बाद किसान दिल्ली की सीमाओं पर लगे मोर्चों से अपने घरों को वापसी करेंगे। 378 दिन चला किसान आंदोलन देश और दुनिया के इतिहास में एक ऐसा मुकाम बना चुका है जिसके दोहराये जाने की कल्पना अभी संभव नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा जून, 2020 में अध्यादेशों के जरिये लाये गये तीन नये कृषि कानूनों के...
More »क्या हैं अमीर व गरीब देशों के लिए प्राकृतिक संपदा के मायने?
-डाउन टू अर्थ, जिस समय दुनिया वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर क्लाइमेट चेंज के बैनर तले कॉप-26 में कार्बन बजट पर चर्चा करने में व्यस्त थी, ठीक उसी समय एक अन्य मोर्चे पर एक और महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। इस बहस के केंद्र में था कि क्या हम प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग को नियंत्रित कर सकते हैं? यह बहस उस उपभोग...
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