बड़े-बड़े सपने लेकर जिंदगी की शुरुआत करने वाले युवा जब हकीकत की बेरहम जमीन पर खुद को असुरक्षित महसूस करता है तो उसके अंदर हताशा घर करने लगती है। हताशा की ऐसी ही कई स्वनिर्मित वजहों के चलते प्रदेश में बड़ी संख्या में युवा हताशा की प्रवृत्ति का शिकार हो रहे हैं। यह हताशा उन्हें नशे की लत में धकेलने से लेकर जिंदगी से मोहभंग तक खींच ले जा रही...
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दबाव और द्वंद्व में पिसते मासूम-- ज्योति सिडाना
आजकल युवाओं का अच्छी नौकरी और उच्च वेतन पाने से संबंधित अलग-अलग तरह के दबावों के कारण आत्महत्या करना कुछ-कुछ समझ में आता है, लेकिन स्कूल में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों की आत्महत्याएं समझ से परे हैं, क्योंकि इनके कारण गैर-तार्किक ही नहीं, बल्कि अर्थहीन भी होते हैं। उन्हें अपनी हर समस्या का एक ही हल नजर आता है- आत्महत्या कर लेना। उपभोक्तावाद ने एक-दूसरे की समस्याएं समझने की शैली...
More »स्त्री, सेहत और शौचालय--- नसीरुद्दीन
इसे स्वच्छता का प्रचार मान कर न पढ़ें, वरना नाउम्मीदी हाथ लगेगी! सवाल नजरिये का है. यही वजह है कि खबर की दुनिया में मौलानाओं का समुदाय गलत वजहों से सुर्खियों में ज्यादा जगह पाता है. जब वे कोई समाजी बदलाव की बात करते हैं, तो आम तौर पर उसे कम तवज्जो मिलती है. ऐसी ही एक खबर पिछले दिनों आयी और गुम हो गयी. हरियाणा के नूह इलाके में...
More »15 करोड़ के अधिक भारतीय हैं मानसिक रूप से बीमार
नई दिल्ली। क्या आप खुद को अन्य लोगों की तुलना में मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ मानते हैं? क्या आपको इस सुझाव पर हंसी आती है कि किसी को मानसिक समस्या भी हो सकती है, तो आप गलत हो सकते हैं। मेंटर हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (Nimhans) के द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 13 साल और इसके अधिक उम्र के 15 करोड़ भारतीय एक या...
More »न बीतनेवाला दिसंबर-- सुजाता
दिसंबर बीतते हुए पिछले कई वर्षों का लेखा-जोखा आप से आप करने लगता है. ब्रेक्जिट, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव, सीरिया का गृहयुद्ध, नोटबंदी, राष्ट्रगान, राष्ट्रभक्ति, इन सबका हिसाब लगाने के बाद भी एक दिसंबर बचा रहता है, जो कई वर्षों से नहीं बीता. न वह नया होता है न पुराना. वह बस टंग गया है दीवार पर. उसकी तारीखें बदलती हैं, लेकिन उसकी तासीर नहीं बदलती. यह हमेशा उतना ठंडा...
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