अपने राजनीतिक बयानों को लेकर जब-तब चर्चा में रहने वाले कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के आलू की फैक्टरी लगाने वाले बयान ने खासी सुर्खियां बटोरीं। कोई इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया' मुहिम पर व्यंग्य बता रहा है तो कोई राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता करार दे रहा है। यदि राजनीति से परे हट कर देखा जाए तो भारत में आलू की चर्चा नकारात्मक संदर्भों में...
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असमानता की जड़ें-- सतीश सिंह
सरकार चाहती है कि देश विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर हो, लेकिन वह बैंकों की सेहत सुधारने की दिशा में ठोस पहल नहीं कर रही है। मजबूत अर्थव्यवस्था की रीढ़ बैंकिंग क्षेत्र को माना गया है। अर्थव्यवस्था को बैंकों की मदद से ही संतुलित रखा जा सकता है। बैंकों की सकारात्मक भूमिका के बिना वित्तमंत्री देश के विकास के सपने को साकार नहीं कर सकते हैं। संपत्ति शोध कंपनी ‘न्यू...
More »आर्थिक विकास के लिए नीतियां जरूरी
वैश्विक होती अर्थव्यवस्था के दौर में समान विकास की अवधारणा मजबूत हो रही है. नीति-निर्माता से लेकर आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि विकास दर जरूरी है, लेकिन बिना आर्थिक असमानता को दूर किये विकास अधूरा है. इस व्यापक सोच के साथ रांची में ‘इंटरनेशनल काॅन्फ्रेस ऑन इन्क्लूसिव एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट इन झारखंड: चैलेंज एंड अपॉर्चुनिटी' विषय पर तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. पूर्वी भारत...
More »भारत का आइआइटी स्वप्न-- संदीप मानुधने
एक विशाल देश भारत, जिसकी एक अद्भुत प्राचीन संस्कृति रही है, और जिसने तमाम चुनौतियों के बावजूद सदैव अच्छी व गहन शिक्षा को समाज का एक विशिष्ट पहलू बनाये रखा है, वह आज एक दोराहे पर खड़ा है. हमें एक नये तकनीकी विश्व में अपनी ठोस जगह बनानी है, हमारे संसाधन सीमित हैं और हमारे पास वक्त भी कम है. आधुनिक विश्व अर्थव्यवस्था के सबसे प्रबल और शक्तिशाली देशों...
More »अर्थव्यवस्था के तीन इंजन-- भरत झुनझुनवाला
सरकार का दावा है कि अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत की सम्मानजनक गति से आगे बढ़ रही है. हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर विकास नहीं दिख रहा है. महाराष्ट्र के सीमेंट विक्रेता ने बताया कि बिक्री 30 प्रतिशत कम है. दिल्ली के टैक्सी चालक ने कहा कि बुकिंग कम हो रही है. इसके विपरीत बड़ी कंपनियां ठीक-ठाक हैं. बहरहाल, आम आदमी का धंधा कमजोर है. संभवतया इसका प्रमुख कारण मोदी...
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