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भारत की शिक्षा व्यवस्था पर 'असर' ने क्या असर डाला ?

औपचारिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए अधिकांश अभिभावक-गण अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। बच्चों के लिए स्कूल ढूँढते हैं, बस्ता खरीदते हैं, पेन- पेन्सिल, कॉपी-किताब खरीदते हैं, स्कूल की पोशाक खरीदते हैं। तमाम सरकारों की भी यही कोशिश रही कि बच्चे स्कूल जाएँ। सरकारों ने विद्यालयों का निर्माण करवाया, शिक्षकों की नियुक्ति की और ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई। पिछले कई दशकों में ऐसे कई कदम उठाए गए...

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छत्तीसगढ़ः कहां तक सही है प्रतिबंधित तिवरा या खेसारी दाल को समर्थन मूल्य के अंतर्गत लाना

मोंगाबे हिंदी, 12 जनवरी पिछले 50 सालों से भी अधिक समय तक देश में प्रतिबंधित रही, तिवरा या खेसारी दाल की छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर ख़रीदी का मामला अब अटक गया है। असल में कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में हुए राज्य के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में समर्थन मूल्य पर इस दाल की ख़रीदी का वादा किया था। लेकिन राज्य से कांग्रेस सरकार की विदाई के साथ...

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राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है नैनो यूरिया

डाउन टू अर्थ, 12 जनवरी अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिको ने छद्म कृषि विज्ञान के नैनो यूरिया को राष्ट्रीय खाध्य सुरक्षा के लिए खतरा और किसानो का खुला शोषण बताया. पंजाब कृषि विश्वविधालय, लुधियाना द्वारा ताजा प्रकाशित अनुसंधान के अनुसार ईफको की नैनो यूरिया तकनीक अपनाने से गेंहू की पैदावार मे 21.6 प्रतिशत और धान की पैदावार में 13 प्रतिशत कमी दर्ज हुई। इसके अतिरिक्त गेहूं और धान के दानों में...

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मैसूरु दशहरा के मशहूर हाथी की मौत से उजागर होती कर्नाटका में हाथियों की बढ़ती दिक्क़तें

मोंगाबे हिंदी, 09 जनवरी कर्नाटका के वन्यजीव प्रेमियों को पिछले साल दिसंबर का महीना बहुत ज्यादा दुखी कर गया। हासन जिले के यसलूर वन रेंज में हाथी पकड़ने के अभियान के दौरान जंगली हाथी के साथ हुई मुठभेड़ में राज्य का प्रिय हाथी अर्जुन मारा गया। यह ऑपरेशन 22 जून, 2023 को आए वन विभाग के उस आदेश के तहत हो रहा था, जिसमें हाथियों को सामूहिक रूप से रेडियो कॉलर...

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जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए स्थानीय पहल अधिक जरूरी क्‍यों?

इंडियास्पेंड, 04 जनवरी झारखंड के लातेहार जिले के नेतरहाट पहाड़ियों में बसे गांव दादीचापर में बिरजिया जनजाति के लगभग 35 परिवार रहते हैं। बिरजिया समुदाय भारत के सबसे दुलर्भ चिन्हित 75 आदिवासी समूहों में से एक है। बादलों से ढकी घुमावदार पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ यह क्षेत्र काफी मनोरम दिखता है। दादीचापर गांव, लातेहार शहर से 30 किलोमीटर दूर है और इस गांव तक एक पथरीली और घुमावदार सड़क...

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