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‘मन की बात’ करने वाले ‘मनरेगा’ की बात क्यों करने लगे?

-न्यूजलॉन्ड्री, बात मनरेगा के बहाने सामाजिक सुरक्षा की, आखिर क्यों पूरी दुनिया में धुर पूंजीवाद की वकालत करने वाले शासक भी संकट के समय साम्यवादी हो जाते हैं. 20 लाख करोड़ के विशेष पैकेज के तहत एक बड़ा हिस्सा (40,000 करोड़ रुपए) वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने मनरेगा योजना में खर्च करने की घोषणा की है. यह हिस्सा केद्रीय बजट में घोषित मनरेगा फंड के अतिरिक्त होगा. खुद को बड़े गर्व से सोशली...

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पंजाब: लॉकडाउन के चलते हुए नुकसान से डेयरी कारोबार को छोड़ना चाहते हैं पशुपालक

-गांव कनेक्शन,  कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के चलते पंजाब के दुग्ध उत्पादन पर कहर बनकर टूटा है। सूबे में दुग्ध उत्पादन का धंधा, कृषि क्षेत्र की कुल घरेलू पैदावार का एक तिहाई हिस्सा है। ग्रामीण-पंजाब के 34 लाख परिवारों में से कम से कम 60 फ़ीसदी परिवार इस धंधे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर के लगभग 20 हजार प्रवासी गुर्जर परिवार भी पंजाब में...

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लॉकडाउन के असर से उबरने के लिए राज्यों ने प्रधानमंत्री से माँगा आर्थिक पैकेज

-सत्यहिंदी, प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की बैठक में एक बात साफ़ उभर कर सामने आई कि लॉकडाउन के प्रभावों से उबरने के लिए राज्य सरकारों को विशेष आर्थिक पैकेज की ज़रूरत है।  राज्यों ने प्रवासी मज़दूरों और मझोले-लघु-सूक्ष्म उद्योगों की मदद करने की बात कही। इसके अलावा खपत बढ़ाने के उपाय करने की भी चर्चा की गई। तमाम मुख्यमंत्रियों ने इस पर ज़ोर दिया कि केंद्र सरकार लॉकडाउन के असर से तबाह...

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कोविड-19 संकट के बीच मजदूरों को आर्थिक सहयोग देने की वित्तीय क्षमता रखती है भारत सरकार

-द प्रिंट,  कोरोनावायरस केंद्र और राज्य सरकारों के लिए नई चुनौती बन कर सामने आया है. इसके मद्देनजर अर्थशास्त्रियों ने भी सरकार के सामने कई तरह के सुझाव रखे हैं. आर्थिक विशेषज्ञों ने एक बात स्पष्टता से रखी है- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित सहयोग पैकेज कामगार जनता को भूख से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आगे बहुत छोटा है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई), अन्न...

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कोरोना संकट में दिखा गरीबी का नया मानचित्र

-इंडिया टूडे, कोरोना संकट ने सचमुच गरीबी का नया मानचित्र दिखाया है. इस मानचित्र में ऐसे गरीब ज्यादा हैं जो रोज न कमाएं तो उनके लिए पेट की भूख को शांत करना मुश्किल है. सरकारी स्तर पर बांटे जा रहे राशन और फंसे हुए प्रवासी मजदूरों के आंकड़ों पर गौर करें तो ऐसे गरीबों की भी तादाद बड़ी है जो रोज न कमाएं तो उन्हें परिवार के साथ भूखे पेट ही...

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