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जाति के आंकड़ों से कौन डरता है?- योगेन्द्र यादव

जाति का भूत देखते ही अच्छे-अच्छों की मति मारी जाती है. या तो लोग बिल्ली के सामने आंख मूंदे खड़े कबूतर की तरह हो जाते है, कड़वी सच्चाई का सामना करने के बजाय यह खुशफहमी पालने लगते हैं कि जाति है ही नहीं. या फिर उनकी गति सावन के अंधे की तरह हो जाती है. सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है और इसी तर्ज पर कुछ लोगों...

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उपलब्धियों से अधिक चुनौती -- अजय बोस

केंद्र की सत्ता में एक साल पूरे होने के अवसर पर भाजपा चाहे कितना भी जश्न क्यों न मनाए, वास्तविकता यह है कि उसकी परेशानी छिपाए नहीं छिप रही। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि कॉरपोरेट हितैषी की रही है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी यह छवि कमोबेश खंडित होती दिखाई देती है। पिछले दिनों खत्म हुए बजट सत्र में उनकी कोशिशों के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हुआ,...

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प्रतीकों की राजनीति- प्रमोद मीणा

जनसत्ता 4 अक्तूबर, 2014: गांधीजी के जन्मदिन दो अक्तूबर से देश भर में स्वच्छ भारत अभियान का आगाज करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रतीकों की राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। सरदार पटेल और कृष्ण का सफल प्रतीकात्मक चुनावी दोहन करने के बाद उनकी नजरें अब गांधी और झाड़ू को एक साथ साधने पर हैं। गांधी के नाम को हर चुनाव में भुनाती आई कांग्रेस दो अक्तूबर को एक रस्मी समारोह...

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सामाजिक न्याय का तंग दायरा- जितेंद्र कुमार

जनसत्ता 29 सितंबर, 2014: अगस्त 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करके तब के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जिस सामाजिक न्याय का ताना-बाना बुना था, उसके बिखरने में बस चंद वर्ष लगे थे। सबसे पहले उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह जनता दल को तोड़ कर अलग हो गए और मंडल के सबसे अधिक प्रभाव वाले क्षेत्र बिहार में उसके दो प्रतापी नेताओं लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार...

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नए प्रधानमंत्री से उम्मीदें- नीलांजन मुखोपाध्याय

उम्र में मेरे ताऊ जी के बेटे मुझसे कुछ साल बड़े हैं और अमेरिका में रहते हैं। छुट्टियों और पारिवारिक समारोहों के अलावा वह कभी यहां नहीं आते, क्योंकि वह अमेरिकी सपनों में जीने वाले व्यक्ति हैं। हम दोनों लगातार संपर्क में रहते हैं, बेशक कई मुद्दों पर हम एकमत नहीं हैं। कुछ दिनों पहले मेरे पास उनका एक ई-मेल आया। भारत के चुनावी नतीजे पर वह गद्गद थे। उन्होंने लिखा,...

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