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जलवायु परिवर्तन और बांधों के कारण पिछले चार दशकों में तेजी से बदली नदियों की सीमा

डाउन टू अर्थ, 12 अप्रैल पृथ्वी की सतह पर सबसे अधिक बदलाव नदियों की सीमा में होता है। हाल के दशकों में इसमें बहुत भारी बदलाव देखे गए हैं। मोटे तौर पर इस बदलाव के लिए नदियों के प्राकृतिक संतुलन को लोगों द्वारा बिगाड़ने एवं जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार माना जा रहा है। इन बदलावों के पीछे और क्या-क्या कारण हैं? इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज...

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सालाना 50 फीसदी की दर से नष्ट हो रहे हैं पहाड़ी जंगल, खतरे में जैव विविधता: अध्ययन

डाउन टू अर्थ, 28 मार्च  दुनिया के 85 फीसदी से अधिक पक्षी, स्तनपायी और उभयचर प्रजातियां पहाड़ी जंगलों में रहते हैं, लेकिन ये जंगल तेजी से गायब हो रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में, 2000 के बाद से 7.81 करोड़ हेक्टेयर यानी 7.1 फीसदी पहाड़ी जंगल गायब हो गए है। अधिकांश नुकसान उष्णकटिबंधीय जैव विविधता हॉटस्पॉट में हुआ है, जिससे संकटग्रस्त प्रजातियों पर दबाव बढ़ रहा है। 21वीं सदी की...

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आईपीसीसी रिपोर्ट: ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना कैसे हो सकता है संभव

कार्बनकॉपी, 23 मार्च  जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने सोमवार को एक सिंथेसिस रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के इस पैनल द्वारा छठे आकलन चक्र की अंतिम रिपोर्ट है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के भौतिक प्रभावों से काफी नुकसान हो रहा है, जो कुछ मामलों में अपरिवर्तनीय है। रिपोर्ट में इस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की गई है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को...

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चंबल में बढ़ रहा है पनचीरा का कुनबा

डाउन टू अर्थ, 4 मार्च इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा विलुप्त प्रजाति में रखे गए स्कीमर परिवार के पक्षी इंडियन स्कीमर का सबसे बड़ा कुनबा अब भारत की चंबल नदी में है। सच कहें तो दुनिया भर में लुप्त प्राय स्थित में पहुंचें इस हिमालयी पक्षी को चंबल की खूबसूरत वादियां खूब रास आ रही है।  राजस्थान के धौलपुर और मध्यप्रदेश के मुरैना जिले की सीमा के बीचोबीच...

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बेमौसमी बढ़ती गर्मी से फसलों को बचा सकता है बायोचार, वैज्ञानिकों ने बताया तरीका

डाउन टू अर्थ, 24 फरवरी  वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘बायोचार’ सदियों से लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक पारंपरिक कृषि पद्धति रही है। कृषि और पेड़ों का कचरा जैसे कार्बनिक पदार्थों को जलाने से बना चारकोल जैसे पदार्थ को बायोचार कहते हैं। वैज्ञानिकों ने जलवायु-स्मार्ट कृषि (सीएसए) अभ्यास के रूप में इसकी क्षमता का विश्लेषण करने के लिए बायोचार पर दुनिया भर के लगभग 600 अध्ययनों में व्याप्त आंकड़ों को...

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