काम ज्यादा- पैसा कम-- शायद, नये वित्तवर्ष में मनरेगा के मजदूरों के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय का संदेश यही है.अगर बात अटपटी लगे तो इस तथ्य पर विचार कीजिए : पिछले साल के आखिर में खेती-बाड़ी के काम में मनरेगा के फायदे गिनाते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा वित्तवर्ष 2017-18 में कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों पर अबतक मनरेगा की 71 फीसद राशि खर्च हुई है लेकिन नये वित्तवर्ष में...
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निजीकरण नहीं वनों का हो कायाकल्प-- रामचंद्र गुहा
पैंतालीस साल पहले अलकनंदा घाटी के ग्रामीणों ने जब जंगल से पेड़ काटकर ले जाने वालों को रोका, तो किसी ने सोचा न होगा कि यहीं से चिपको आंदोलन की नींव पड़ने जा रही है। एक ऐसा किसान आंदोलन, जिसने भारत में वनों के व्यावसायिक दोहन पर सबका ध्यान खींचा। चिपको आंदोलन का ही यह असर था कि वनाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी। गढ़चिरौली, बस्तर, सिंहभूम और पश्चिमी घाट सहित...
More »छत्तीसगढ़ : सूखने लगा जमीन का गला, गहरा रहा पानी का संकट
रायपुर । मुश्किल स्थिति में बिना बुनियादी सुविधाओं के भी जीवन गुजारना संभव है, लेकिन पानी के बगैर जीवन की कल्पना भी बेमानी है। गर्मी शुरू होते ही फिर जमीन का गला सूख रहा। राज्य के शहरों से लेकर गांवों तक पानी की कमी का असर भी दिखने लगा है। कई इलाकों में जलसंकट शुरू हो गया है। नईदुनिया राज्य के कुछ प्रमुख शहरों और जिलों में पेजयल व्यवस्था का...
More »ताकि अगली पीढ़ी को भी पानी मिले-- एम वेंकैया नायडू
ब्रिटिश कवि सैम्युअल टेलर कॉलरिज की कविता द राइम ऑफ द एनसिएंट मरीनर में एक पंक्ति है वाटर, वाटर एव्रीवेयर, नॉर एनी ड्रॉप टु ड्रिंक यानी पानी तो हर जगह है, पर एक बूंद भी पीने के काबिल नहीं। करीब दो सदी पहले इन शब्दों को रचते हुए सैम्युअल क्या आने वाले वर्षों की भविष्यवाणी कर रहे थे? क्या वह जाने-अनजाने उस जल संकट का कयास लगा रहे...
More »संवेदनहीन व्यवस्था और लापरवाह चिकित्सक-- सुनीता मिश्रा
दुनिया भर में डॉक्टरों को भगवान का पर्याय माना जाता है। लेकिन पैसों की भूख और लापरवाही के कारण उनमें संवदेनशीलता शून्य होती जा रही है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के झांसी में एक ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला सामने आया, जहां महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने इलाज के लिए आए एक व्यक्ति के सिर के नीचे उसी का कटा हुआ पैर रख तकिया बना दिया।...
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