पिछले साल किसान सूखे की मार झेल चुके हैं। इस साल फिर सूखा पड़ गया। जबकि कुछ वर्षों से किसान निरंतर संकट में हैं। उनकी हालत पहले से ही खराब है। इस वर्ष सूखे ने उन्हें गहरे संकट में डाल दिया है। भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही निकली है। खुद कृषि मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है कि सामान्य से पंद्रह-सोलह फीसद कम बारिश हुई। इससे खरीफ की फसल...
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आयात नहीं, दाल का उत्पादन बढ़ाएं-- बाबा मायाराम
जब आग लगती है, तभी हम कुआं खोदने के बारे में सोचते हैं। दालों के मामले में भी ऐसा ही हुआ। जब दाल के दाम इतने बढ़ गए कि उसे खाना मुश्किल हो गया, तब जाकर सरकार जागी। अब आनन-फानन में कई फैसले लिए जा रहे हैं। दाल आयात करने का फैसला लिया गया, व्यापारियों के गोदामों और दाल मिलों में छापे मारे गए, स्टॉक की क्षमता तय की गई।...
More »मोदी की रैली ने निकाला किसानों का 'दिवाला'-- पंकज प्रियदर्शी
हाजीपुर के निकट सुल्तानपुर गांव का वो इलाक़ा आज सुनसान है, जहाँ रविवार को प्रधानमंत्री मोदी की रैली की ख़ूब चर्चा थी। रैली के लिए जो तैयारियाँ की गई थीं, बांस और बल्ली लगाए गए थे, अब हटाए जा रहे हैं। छोटे-छोटे ट्रकों से सामान ढोया जा रहा है, कुछ दिनों पहले जो मज़दूर मंच बनाने और घेराबंदी करने में लगे थे, अब वही मज़दूर उसे हटाने में लगे हैं। लेकिन...
More »'सोयाबीन की पेटी' आधी खाली, एक बीघा में सिर्फ दो क्विंटल पैदावार
जितेंद्र यादव, इंदौर। सोयाबीन की पेटी माने जाने वाले मालवा के बड़े हिस्से में इस बार सोयाबीन का उत्पादन आधा रह जाएगा। एक हेक्टेयर में औसत पैदावार सिर्फ 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी एक बीघा में केवल दो क्विंटल। ये सरकार के फसल कटाई प्रयोग से निकले आंकड़े हैं, जबकि हकीकत तो इससे भी भयावह है। कई किसानों का तो बीज भी लौटकर नहीं आया। सोयाबीन अनुसंधान केंद्र के अनुसार, पूरी...
More »दाल उत्पादन बढ़ाने की जरूरत-- रमेश दूबे
महंगे प्याज ने पहले ही किचन का जायका बिगाड़ के रखा है और अब दाल की कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं. दालों की कीमतों पर लगाम लगाने के सरकार ने स्टॉक लिमिट, जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई, दालों के वायदा कारोबार का निलंबन जैसे उपाय किये हैं, लेकिन ये कारगर साबित नहीं हो रहे हैं. सरकार भले ही थोक मुद्रास्फीति के माइनस 4.95 के ऐतिहासिक स्तर तक पहुंचने का ढिंढोरा...
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