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सेब की लाली पर लापरवाही का दाग

हिमाचल प्रदेश में प्रति वर्ष होने वाले 22 सौ करोड़ के सेब कारोबार पर सरकारी तंत्र की लापरवाही का ग्रहण लगता जा रहा है। वर्तमान में स्थिति इतनी खराब है कि ट्रकों की कमी के कारण प्रदेश में करीब 40 से 50 हजार सेब पेटियों का लदान नहीं हो पा रहा है। सड़कों की हालत खराब है और सेब पैकिंग के लिए पेटियां पर्याप्त नहीं हैं। इसके अलावा प्रदेश सरकार...

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चुनौती से ज्यादा उपेक्षा के मारे

छत्तीसगढ़ के जंगलों में एक हफ्ता गुजारकर लौटे बृजेश पांडे बता रहे हैं कि देश की सबसे बड़ी चुनौती का मुकाबला करने के लिए तैनात सीआरपीएफ के जवानों के मनोबल की हालत क्या है बारिश लगातार हो रही है. कभी हल्की तो कभी तेज बौछार के साथ. संभल-संभलकर चलते हुए  हमें तीन घंटे हो गए हैं. यहां-वहां देखते हुए, दुश्मन की तलाश करते हुए. दुनिया के सबसे बड़े अर्धसैनिक बलों में...

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कानकून सम्मेलन से सार्थक परिणाम आए

संयुक्त राष्ट्र। जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन समझौते को मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता पर बल देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान-की मून ने इस वर्ष के अंत में होने वाले कानकून सम्मेलन में यथार्थवादी परिणाम हासिल करने का आह्वान किया है। टोरंटो में जी-20 सम्मेलन में विश्व के नेताओं को संबोधित करते हुए मून ने कहा कि समग्र वैश्विक समझौते पर पहुंचाना शीघ्र और आसान नहीं होगा। हालंाकि महासचिव कार्यालय के...

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दाल से टूटता रोटी का नाता

नई दिल्ली [रमेश दुबे]। दलहनों की पैदावार बढ़ाने के लिए लगभग दो दर्जन योजनाओं की असफलता के बाद केंद्र सरकार ने सीधे किसानों को ज्यादा कीमत देने की रणनीति अपनाई है। इसके तहत दलहनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोत्तरी की गई है। जहा अरहर के समर्थन मूल्य में सात सौ रुपये की वृद्धि की गई है, वहीं मूंग में 410 रुपये तथा उड़द में 380 रुपये की...

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किसान मरे नहीं तो क्या करे--- देविंदर शर्मा

 भारत में किसानों की आत्महत्या को लेकर छिड़ी बहस के बीच अमरीका में किसानों को अनुदान दिए जाने के बारे में एक दिलचस्प रिपोर्ट आई. 1997 से 2008 के बीच भारत में करीब दो लाख किसानों ने बढ़ते कर्ज के कारण होने वाले अपमान से बचने के लिए अपनी जान देने का आत्मघाती कदम उठाया. इन किसानों को सरकार से किसी प्रकार की सीधी सहायता नहीं मिली थी. अमरीका ने 1995...

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