-जनपथ, सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चे का जहां भव्य मंच है, 12 फुट की दो-दो एलईडी स्क्रीन लगी है और मंच से कुछ दूरी पर इसी तरह की अन्य स्क्रीन भी हैं। शाम पांच बजे तक यहां वक्ताओं की तस्वीरें दिखाई जाती हैं और अँधेरा होते ही वहां का नज़ारा ओपन थियेटर जैसा हो जाता है। यहां किसानों और सिख परम्परा से जुड़ी फ़िल्में दिखाई जाती हैं। आंदोलन के चढ़ाव...
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महिला किसान दिवस: खेत से लेकर सड़क तक आवाज़ बुलंद करती महिलाएं
-न्यूजक्लिक, यूं तो महिला किसान दिवस की अपनी एक अलग अहमियत है लेकिन आज हज़ारों महिला किसान, जो देश की राजधानी की सीमाओं पर डटी हुई हैं उन्होंने इसकी अलग ही परिभाषा गढ़ दी है। वो ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन की महज़ समर्थक ही नहीं बल्कि उसमें बराबर की भागीदार भी हैं। वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने हक़ की लिए लड़ाई लड़ रही हैं, नारे लगा रही हैं...
More »मैं इसलिए नहीं लगवाउंगा कोविड वैक्सीन
-आउटलुक, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर विकास बाजपेयी कहते हैं कि वह कई कारणों से वैक्सीन नहीं लेंगे। वैक्सीन को लेकर कोई गर्व करने या उदास होने के लिए इसमें कुछ भी नहीं है। सबसे बड़ा सवाल वैक्सीन की प्रमाणिकता का है जिसका सरकार के पास डेटा ही नहीं है। मुझे लगता है कि सरकार के पास वैक्सीन की बीन बजाने के अलाना कोई विकल्प नहीं है, केवल लोगों का...
More »सूखे बुंदेलखंड में जल संरक्षण की मिसाल है जखनी गांव
-वाटर पोर्टल, भारत में जब भी जल संकट की बात होती है, तो उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड़ का जिक्र जरूर होता है। यहां पाताल में जाता भूजल, मुंह चिढ़ाते सूखे कुएं-तालाब और दम तोड़ती नदियों के कारण बुंदेलखंड़ में किसान होना अभिशाप हो गया है। पानी की कमी के चलते किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। पानी का संकट, खेती में नुकसान और रोजगार का अभाव युवाओं को पलायन के लिए मजबूर...
More »बावडी: कुछ अनछुए पहलू
-वाटर पोर्टल, सदियों से बावड़ी हमारी सनातन जल प्रदाय व्यवस्था का अभिन्न अंग रही है। अलग-अलग इलाकों में बावड़ियों को अलग-अलग नामों यथा सीढ़ीदार कुआं या वाउली या बाव इत्यादि के नाम से पुकारा जाता है। अंग्रेजी भाषा में उसे स्टेप-वैल कहा जाता है। इस संरचना में पानी का स्रोत भूजल होता है। भारत में इस संरचना का विकास, सबसे पहले, देश के पानी की कमी वाले पश्चिमी हिस्से में हुआ।...
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