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शख्शियत बड़ी या संदेश- राजदीप सरदेसाई

‘क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में चुनाव कैसे होते हैं? पिता के लिए शराब, मां के लिए कपड़े और बच्चे के लिए भोजन।’ ‘आखिर इस देश में क्या भ्रष्ट नहीं है? भारत का केंद्रीय व्यसन या दोष भ्रष्टाचार है; भ्रष्टाचार की केंद्रीय धुरी है चुनावी भ्रष्टाचार; और चुनावी भ्रष्टाचार की केंद्रीय धुरी हैं कारोबारी घराने।’ उपरोक्त उक्तियां अन्ना हजारे द्वारा कही गई बातों जैसी लगती हैं। हालांकि ये बातें...

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आंदोलन के बाद उठे सवाल : महेश रंगराजन

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन ने जनता के मन में जगह बना ली और सरकार को लोकपाल विधेयक के संबंध में चुस्ती-फुर्ती दिखानी पड़ी। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और उसे नियंत्रित करने के श्रेष्ठ तरीकों के बारे में सक्रिय बहस जारी है। अन्ना के अहिंसक आंदोलन ने युवाओं और आमतौर पर गैरराजनीतिक रुझान रखने वाले मध्यवर्ग को भी प्रभावित किया। यह भी उल्लेखनीय है कि नए विधेयक की प्रक्रियाएं...

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विधायकों को मिलेगा मनरेगा का रिपोर्ट कार्ड

पटना। बिहार के विधायक अब अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की अद्यतन जानकारी रख सकेंगे। मनरेगा में सम्बंधित विधानसभा क्षेत्र के बारे में जानकारी राज्य ग्रामीण विकास विभाग विधायक को रिपोर्ट कार्ड के जरिये अवगत करायेगा। राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा ने सोमवार को बताया कि विधायकों को मनरेगा की प्रगति रिपोर्ट और स्वीकृत योजनाओं की सीडी पंचायतवार उपलब्ध करायी जायेगी, जिससे...

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बाबा रामदेव भी चले अन्ना की राह, बड़े नोटों के खिलाफ छेड़ेंगे अभियान

मैसूर/दिल्ली/मुंबई. योग गुरु बाबा रामदेव ने भी अन्ना हजारे की तरह अब अभियान छेड़ने का मन बना लिया है। रामदेव के निशाने पर होंगे देश में इस्तेमाल हो रहे बड़ी राशियों के नोट। बड़े नोट बंद करवाने के लिए 1 जून से देशव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। उनका कहना है कि कालेधन के रूप में बड़े नोटों का ही प्रयोग किया जाता है। मैसूर में एक योग शिविर में बाबा रामदेव ने कहा...

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लोकतंत्र में शॉर्टकट नहीं होता : हर्ष मंदर

वह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण था, जब देशभर के मध्यवर्गीय युवा भ्रष्ट प्रशासन के प्रति आक्रोश व्यक्त करने के लिए एकजुट हुए। हमारा देश कई विरोध प्रदर्शनों का साक्षी रहा है। कुछ हिंसक तो कुछ शांतिपूर्ण। कुछ वेतन व भूमि के लिए तो कुछ आत्मसम्मान व मानवाधिकारों के लिए। लेकिन यह आंदोलन कुछ अलग था। दशकों बाद हमने शिक्षित और संपन्न युवाओं को इतने बड़े पैमाने पर...

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