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शहरी इलाकों में आर्थिक असमानता बनी चुनौती- जयंतीलाल भंडारी

देश के शहरों में अमीरी और गरीबी के बीच असमानता के उच्चतम स्तर ने इन दिनों एक बड़ी बहस का रूप ले लिया है। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2011-12 में शहरी क्षेत्रों में अमीरों और गरीबों के बीच में आर्थिक असमानता अब तक के सर्वोच्च स्तर पर रहा। खासतौर से देश के 10 राज्यों- दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, केरल और असम...

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गांवों में केवल बूढ़े रह जायेंगे

तकनीक और शहरीकरण पूरी दुनिया को तेजी से बदल रहे हैं. खास कर विकासशील देशों को. अपना देश भी इससे अछूता नहीं है. जैसे-जैसे ‘इंडिया’ 2025 की ओर बढ़ रहा है, हम ‘भारत’ के बारे में भूल रहे हैं. इस श्रृंखला में हम यह आकलन पेश करने की कोशिश करेंगे कि 2025 में कैसी होगी हमारी जिंदगी. पेश है पहली कड़ी. नयी दिल्ली : आज भारत में कस्बे तेजी से शहरों में...

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मनरेगा पर ज्यादा सरकारी धन खर्च

मनरेगा देश की सबसे बड़ी योजना है, जिस पर केंद्र सरकार 40-42 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है. इसके मकसद के बारे में सभी जानते हैं. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक कानून है, जो शासन को इस बात के लिए बाध्य करता है कि वह किसी भी ग्रामीण परिवार के वैसे सदस्यों को एक साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराये, जो 18 साल...

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लेबर की कमी होने से मजदूरी दो वर्षों में दोगुनी- शमशेर सिंह

रियल स्टेट डेवलपरों को नकदी के अभाव से भी बड़ी समस्या फिलहाल मजदूरों  की कमी लग रही है। मनरेगा की शुरुआत से यह संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। मजदूरों की कमी के साथ ही इनकी मजदूरी में भी काफी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। आज हालात यह है कि मजदूरों की कमी प्रोजेक्ट में देरी की एक वजह बनती जा रही है।  मजदूरों की किल्लत के चलते उनकी मजदूरी...

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सात-आठ मीटर की गहराई तक निकाला जाता है बालू

2011 में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने नदियों के खनन के खिलाफ आदेश जारी किया. उस आदेश के मुताबिक नदियों से दो मीटर से ज्यादा बालू निकालने की इजाजत नहीं है. पर बिहार की नदियों से 7-8 मीटर की गहराई तक बालू निकाली जाती रही है. बिहार नदियों का प्रदेश रहा है. नदियों ने यहां के लोगों को पाला-पोसा है. लोगों के जीवन से घुली-मिली रही हैं. फिर क्या वजह है कि...

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