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तमाम संकेतकों में गिरावट, उम्मीद से कम वृद्धि दर- कोविड की इस लहर ने अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित किया

-द प्रिंट, कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालने जा रही है. अधिकतर जानकारों की भविष्यवाणी यह है कि पिछले साल की पहली तिमाही में जब पूर्ण लॉकडाउन किया गया था तब उत्पादन में जो गिरावट हुई थी उसके मुकाबले इस साल कम गिरावट होगी. अर्थव्यवस्था की हालत पिछले साल के मुकाबले इस साल बेहतर रहेगी लेकिन महामारी की दूसरी लहर के कारण यह महामारी के पहले...

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'हम कोरोना से बच भी गए तो ग़रीबी से मर जायेंगे' : जम्मू-कश्मीर के कामगार लड़ रहे ज़िंदा रहने की लड़ाई

-न्यूजक्लिक, जम्मू-कश्मीर में कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के विस्तार ने श्रमिक वर्ग के परिवारों के लिए अभूतपूर्व दुख पैदा किया है जो बस खाने भर का कमा पाते हैं। लॉकडाउन ने ऑटो रिक्शा चालकों, टैक्सी चालकों, शिकारा (हाउस बोट) के मालिकों, हस्तकला श्रमिकों, दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों और संविदाकर्मियों को छोड़ दिया है, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जैसा कि वे अपने घरों में सीमित रहते...

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भारत की कोविड-19 इमरजेंसी: The Lancet का ताज़ा संपादकीय

-जनपथ, भारत के पीड़ा भरे दृश्‍यों को समझ पाना मुश्किल है। बीती 4 मई तक 20.2 मिलियन से ज्‍यादा कोविड-19 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए यानी रोज़ाना का औसत 378000 मामले, जिनमें मौतों की संख्‍या 222000 थी जो जानकारों के मुताबिक वास्‍तविकता से बहुत कम आकलन है। अस्‍पताल मरीज़ों से पटे पड़े हैं, स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी पस्‍त हो चुके हैं और संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऑक्‍सीजन, अस्‍पताल के बिस्‍तर...

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महामारी संकट : समुदाय आधारित भागीदारी बढ़ाने की जरूरत

-आउटलुक, महामारी की दूसरी लहर में पूरे देश में समुदाय सबसे अधिक व्यवहारिक (लचीली) संस्था के रूप में उभरे हैं। भारतीय परंपरा, मूल्य और सांस्कृतिक ताकत ने नई ऊर्जा और नए समूहों को स्वत: रूप से हम सबके सामने मदद के लिए लाकर खड़ा कर दिया है । इन सामुदायिक कार्यों ने ही समाज को राज्य और बाजार की विफलता से निपटने में सक्षम बनाया है। हालांकि इस बीच विभिन्न चिकित्सा...

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असलियत को कबूल नहीं कर रही मोदी सरकार और भारतीय राज्यसत्ता फिर से लड़खड़ा रही है

-द प्रिंट, क्या भारतीय राज्यसत्ता विफल हो चुकी है? समाचार पत्रिका ‘इंडिया टुडे ’ का ऐसा ही मानना है. लेकिन मैं इसका विनम्रतापूर्वक खंडन करना चाहूंगा क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह पत्रिका अपने आवरण पर इस आशय का शीर्षक न लगा पाती और मैं यह स्तंभ न लिख पाता. अगर ऐसा होता तो हम यह न जान पाते कि हम कितनी बुरी तरह विफल हो रहे हैं. जब तक किसी राष्ट्र का...

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