-द बेटर इंडिया, विपेश गर्ग पेशे से बागवानी विकास अधिकारी और दिल से एक बागबान हैं। जब विपेश गर्ग बड़े हो रहे थे, वह अक्सर पड़ोसी घरों से पौधे चोरी करते और मुसीबत में पड़ जाते थे। एक बार तो उनके पड़ोसी ने अपने घर से इनडोर पौधों को चुराने के आरोप में उन्हें पुलिस को सौंप दिया था। एक बेहद दिलचस्प बात यह है कि 13 साल बाद, उसी पड़ोसी ने...
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घुमंतू जनजातियां लॉकडाउन की मार झेलने वालों में सबसे आगे हैं तो फिर खबरों में क्यों नहीं हैं?
-सत्याग्रह, सिराज मियां को कुछ दिन पहले यह सूचना मिली कि गुवाहाटी से ट्रेन सेवा शुरु हो गई है. वे भले ही 65 वर्ष के हों लेकिन इस खबर ने जैसे उनके अंदर करंट भर दिया. ‘ये सुनकर मैं एक छोटे बच्चे की तरह खुशी में इधर से उधर घूम रहा था.’ इस खबर को सुनने के बाद उन्होंने और उनके सभी साथियों - आबिद, साहिल, आमिद और शरीफ - ने...
More »‘अब श्रमिक स्पेशल ट्रेन का और इंतज़ार नहीं होता, सफ़र की तारीख नहीं मिली तो पैदल ही चल देंगे’
-द वायर, विभिन्न राज्यों में फंसे हुए मजदूरों को उनके गृह राज्यों तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई हैं, लेकिन इस सफर के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने में प्रवासी श्रमिकों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. हाल यह है कि रजिस्ट्रेशन करने के दस दिन बाद भी उनकी यात्रा सुनिश्चित नहीं हो पा रही है. यही कारण है कि प्रवासी श्रमिक ट्रेन में बारी आने का इंतजार...
More »कोविड-19: लॉकडाउन ने बिगाड़ी ग्रामीण भारत की दशा
-डाउन टू अर्थ, एक महीना पहले तक धनीराम साहू को नहीं पता था कि वायरस या सोशल डिस्टेंसिंग किस बला का नाम है। साहू छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के शंकरदह में रहते हैं। वह कहते हैं, “अब हर कोई कोरोनावायरस और इससे खुद को महफूज रखने की बात करता दिख रहा है।” दुनियाभर के तमाम विज्ञानियों और एपिडेमियोलॉजिस्ट की तरह साहू को भी इस वायरस के बारे में बहुत जानकारी नहीं...
More »कश्मीर में मीडिया और इंटरनेट पर लगाए गए प्रतिबंधों से भारत की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग गिरी, हालांकि स्कोर में हुआ सुधार
हाल ही में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (रिपोर्टर्स सेन्स फ्रंटियर्स - आरएसएफ) जोकि एक मीडिया वॉचडॉग संगठन है और अभिव्यक्ति व सूचना की स्वतंत्रता के लिए काम करता है, ने एक रिपोर्ट जारी की है. यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में साल 2018 हुई छह पत्रकारों की हत्याओं से उल्ट साल 2019 में पत्रकारों की हत्या का एक भी मामला सामने नहीं आया. तब भी यह कहना गलत होगा कि...
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