कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि हम सनकियों के राष्ट्र- एक ऐसा राष्ट्र और ऐसे नागरिक- तो नहीं, जो एक साथ एवं लगातार दो स्तरों पर जीते हुए दोनों के फर्क से भी अनजान हैं? मैं यह सवाल स्वच्छ भारत के उस राष्ट्रव्यापी अभियान के संदर्भ में उठा रहा हूं, जिसे वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बड़े कार्यक्रम के रूप में प्रारंभ किया गया था. नीयत के...
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कानून से ही नहीं रुकेगी क्रूर कायरता-- विभूति नारायण राय
राम मनोहर लोहिया ने भारतीय भीड़ के व्यवहार के लिए एक बड़े मौजूं शब्द का इस्तेमाल किया है- क्रूर कायरता। औसत भारतीय जब भीड़ का अंग होता है, तो उसका व्यवहार एक खास तरह की क्रूरता से भरपूर होता है, जो कई मौकों पर तो बर्बरता की हदें पार कर जाती है। भीड़ किसी जेबकतरे को बस से उतारकर पीट-पीट कर मार डालती है। कभी कोई नकबजन हत्थे चढ़ जाए,...
More »चुनौतियों से जूझता मीडिया-- आशुतोष चतुर्वेदी
मीडिया के खिलाफ एकतरफा फैसला सुनाने वाले आपको बहुत से लोग मिल जायेंगे. मीडिया पर टीका-टिप्पणी करना एक फैशन-सा हो गया है, लेकिन हम सब के लिए यह जानना जरूरी है कि मीडियाकर्मी कितनी कठिन परिस्थितियों में अपने काम को अंजाम देते हैं. पिछले दिनों एक व्हाट्सएप मैसेज वायरल हुआ- पहले अखबार छप के बिका करते थे, अब बिक के छपा करते हैं. इस संदेश...
More »जाति से आगे नहीं सोचती राजनीति-- बद्री नारायण
जातियों का उद्भव राजनीति के लिए नहीं हुआ था। मगर आज जातियां भारतीय राजनीति को आधार दे रही हैं। कहते हैं कि जातियों का उद्भव व्यवसायों व पेशों से जुड़ा था। पहले पेशे से ही जातियां निर्धारित होती थीं। फिर ये ‘जन्मना' अर्थात जन्म से जुड़ गईं। आज के दौर में, जब जातियों को ‘पहचान ' से जोड़कर उनका आक्रामक राजनीतिक इस्तेमाल किया जाने लगा है, तब इनकी एक नई...
More »सोशल मीडिया नहीं, हमें सुधरना होगा-- हरजिंदर
वे अपने-अपने ढंग से सफाई में जुट गए हैं। ट्व्टिर ने उन एकाउंट को बंद करना शुरू कर दिया है जो उसके हिसाब से फर्जी हैं। व्हाट्सएप ने अपने नए अपडेट के साथ ऐसी व्यवस्था की है कि अब अगर कोई संदेश फॉरवर्ड होगा तो पता पड़ जाएगा कि यह मूल रूप से तैयार किया हुआ संदेश नहीं है बल्कि इधर का माल उधर है। हालांकि इन सबका बड़ा नतीजा...
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