पिछले एक साल में देश में बैंक ऋण में बढ़वार कम हुई है. यह अर्थव्यवस्था के लिहाज से एक खराब संकेत हो सकता है. बीते माह जारी रिजर्व बैंक के आंकड़ों और प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता है कि 26 मई 2017 तक सकल बैंक ऋण की सालाना बढ़वार 3.5 फीसद रही जबकि 27 मई 2016 को बैंक ऋण की सालाना बढ़वार की दर 8.0 प्रतिशत थी. गौरतलब है कि जीडीपी और जीवीए(ग्रास वैल्यू एडेड) के...
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महसूस क्यों नहीं हो रहे अच्छे दिन-- आर सुकुमार
इस समय भारत के आर्थिक माहौल के बारे में दो प्रतिस्पद्र्धी कहानियां हैं। दोनों की प्रकृति भले ही एक-दूसरे से अलग हो, लेकिन हैं दोनों सही। जेपी मॉरगन के मुख्य अर्थशास्त्री साजिद जेड चिनॉय की इन्हीं पंक्तियों के साथ आज मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। चिनॉय का यह लेख 19 जुलाई को मिंट में प्रकाशित हुआ था। शीर्षक था- इंडियन इकोनॉमी : अ टेल ऑफ टू नैरेटिव्स। जिन पाठकों...
More »तो क्या शिक्षा पर ख़र्च ही सबसे बड़ी फ़िज़ूलख़र्ची?-- समीरात्मज मिश्र
उत्तर प्रदेश सरकार ने मौजूदा बजट में किसानों की कर्ज़माफ़ी के लिए 36 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान किया और बताया कि इस धनराशि का इंतज़ाम सरकारी ख़र्चों में कटौती और अपव्यय को कम करके किया जाएगा. वहीं शिक्षा के मद में पिछले बजट की तुलना में नब्बे फ़ीसद तक कटौती करके ये सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या शिक्षा पर ख़र्च करना ही सबसे बड़ी फ़िज़ूलख़र्ची है? योगी सरकार...
More »किसान आंदोलन का ट्रेलर --- योगेन्द्र यादव
पिछले दिनों जंतर-मंतर पर किसान की पीड़ा की परेड चल रही थी. साथ ही किसान आंदोलन के नये रूप और नये संकल्प की बानगी भी मिल रही थी. दुख, आक्रोश और नैराश्य के सागर में डूबता-उबरता मैं एक छोटी सी आशा ढूंढ रहा था. वहां पर उसकी झलक दिख गयी. किसान की दशा का नाटकीय चित्रण करने में तमिलनाडु के किसान नेता अय्याकन्नू का कोई जवाब नहीं. राज्य में पिछले...
More »फंसे हुए कर्ज से निजात की नई कवायद-- सतीश सिंह
सरकार ने अध्यादेश के जरिए रिजर्व बैंक को फंसे हुए कर्ज की वसूली के लिए चूककर्ता कंपनियों के विरुद्ध दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार दे दिया है। इस अध्यादेश का उद््देश्य है फंसे हुए कर्ज के मौजूदा गतिरोध को खत्म करना। इस कानून के पारित होने के बाद केंद्रीय बैंक चूककर्ता कंपनियों के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू कर सकता है। साथ ही, फंसे हुए कर्ज की समस्या को निपटाने...
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