दुनियाभर में बीमारियों और इनसे मरनेवालों की तादाद में हो रही वृद्धि के बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं. संस्था की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में 70 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण जनित बीमारियों से हुई है. क्या हैं वायु प्रदूषण के खतरे, भारत में क्या है स्थिति और इससे कैसे निबटा जा सकता है, बता रहा है आज का नॉलेज. नयी दिल्ली...
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बेतहाशा बढ़ते शहरों में टूटती सांसें गुरुवार- एंड्रयू जैकब और इयान जॉहसन
पेरिस में कारों से निकलने वाला धुआं हो या नई दिल्ली में लकड़ी या गोबर से जलने वाला चूल्हा, वायु प्रदूषण की वजह से विश्व भर में वर्ष 2012 में 70 लाख लोगों की मृत्यु हुई है। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन का है, जिसे बीते मंगलवार को जारी किया गया। इन मौतों में एक-तिहाई से अधिक तेजी से विकसित हो रहे एशियाई देशों में हुई, जहां हृदय और फेफड़े संबंधी...
More »उपज का घटता भाव- संजीव झा
एक तरफ खाद-उर्वरक के बढ़ते उपयोग के चलते कृषि पैदावार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, तो दूसरी तरफ तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण ने कृषि योग्य भूमि के विस्तार को सीमित कर दिया। पिछली सदी के दौरान खाद्यान्न की मांग में खासी तेजी के बावजूद खाद्यान्न की कीमत में वास्तविक अर्थों में हर वर्ष 0.7 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। खेती की उपज को लेकर देश के साथ-साथ दुनियाभर के आंकड़ों...
More »इस विकास की कीमत- विनोद कुमार
हमारे देश का अभिजात तबका और शहरी मध्यम वर्ग उदारीकरण और नई औद्योगिक नीति का कमोबेश समर्थक है। और उसके पक्ष में दलीलें देता है। इसी तरह दक्षिणपंथी और मध्यवर्ती राजनीतिक दल- चाहे वह कांग्रेस हो, भाजपा हो या बसपा, राजद आदि- नई औद्योगिक नीति के बारे में लगभग मिलते-जुलते विचार रखते हैं। वामपंथी दल उदारीकरण और नई औद्योगिक नीति के बारे में हाल तक थोड़ी भिन्न भाषा का इस्तेमाल...
More »कृषि नीति और नीयत का संकट- अविनाश पांडेय समर
आंकड़ों की नजर से देखा जाये, तो भारतीय कृषि सहज बोध को धता बतानेवाली अजूबे सी दिखती है. कुछ इस तरह कि भारत की विकास दर के दहाई पार कर देश को अगली विश्व शक्ति बनाने के सपने दिखाने के ठीक बाद वैश्विक आर्थिक मंदी की चपेट में आते हुए ध्वस्त हो जाने पर कृषि क्षेत्र में सुधार ने ही संभाला था. और यह भी कि कुल आबादी के करीब 67...
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