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भूख की भाषा और शास्त्र - सुधीश पचौरी

जनसत्ता 30 मई, 2013: हमारे समकालीन सोच-विचार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ‘गरीब' के बारे में सिर्फ ‘अमीर' (इस प्रसंग में ‘एलीट') विचार करते हैं। गरीब अपनी गरीबी के बारे में विचार करता नहीं पाया जाता। अपने बारे में इस कदर ‘विचार विहीन' होने के बारे में भी गरीब कभी नहीं बोलता। यह बात भी अमीर ही बताते हैं कि गरीब अपनी गरीबी के बारे में इस कारण विचार...

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घर में टीवी-फ्रिज तो नहीं गरीब

आगरा, जागरण संवाददाता। टीवी और फ्रिज को जमाना अब भले ही आम जरूरत का सामान समझता हो, लेकिन सरकार ने इन वस्तुओं को हैसियत का पैमाना मान लिया है। अगर आपके पास कलर टीवी, फ्रिज या फिर दोपहिया वाहन है, तो आप सरकार की नजर में अमीर हो गए हैं। लिहाजा, ऐसे लोगों को गरीब मानकर जो सुविधाएं मिल रही थीं, अब उन पर रोक लगने जा रही है। नए आदेश...

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अर्थशास्त्र की ऊंची मीनार से कुपोषण मिटाने की यह कवायद....

भारतीयों को विवाद-प्रिय माना जाता है और हमारी यह विवादप्रियता एक बार फिर से उठान पर है ! गरीबी-रेखा और गरीबों की तादाद के बारे में लंबे समय तक वाक्युद्ध में उलझे रहने के बाद, प्रसिद्ध अनिवासी भारतीय(एनआरआई) अर्थशास्त्रियों ने एक बार फिर से विवाद छेड़ा है कि भारत में कुपोषण का विस्तार कितना है। पहले योजना आयोग ने गरीबों की संख्या को कागजी तौर पर घटाने की कोशिश की...

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अमीरों की समस्याएं सुलझाने में उलझीं दुनिया भर की प्रतिभाएं

वाशिंगटन। दुनिया भर की बेहतरीन प्रतिभाएं अमीरों की समस्याओं को सुलझाने में उलझी हैं। प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा ने कहा कि इसी वजह से गरीब तबके की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, 'हमने दुनिया भर में एक ऐसा समाज बना लिया है, जो सिर्फ अमीरों को फायदा पहुंचाने में लगा है। इसलिए उस वर्ग पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत...

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भ्रष्टाचार का आर्थिक पहलू- डा. भरत झुनझुनवाला

यदि घूस लेनेवाले और गलत नीतियां बनानेवाले के बीच चयन करना हो तो मैं घूस लेनेवाले को पसंद करूंगा. कारण यह कि घूस में लिया गया पैसा अर्थव्यवस्था में वापस प्रचलन में आ जाता है. लेकिन गलत नीतियों का प्रभाव दूरगामी और गहरा होता है. जैसे ईमानदार नेता विदेशी ताकतों के साथ गैर-बराबर संधि कर ले अथवा गरीब के रोजगार छीन कर अमीर को दे दे, तो देश की आत्मा...

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