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नागरिकता संशोधन विधेयक क्या संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है?

सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 जब लोकसभा में पेश किया गया तो सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ये कहते हुए इसका विरोध किया कि ये विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5, 10, 14 और 15 की मूल भावना का उल्लंघन करता है. कई राजनीतिक और सामाजिक तबके इस विधेयक को विवादित मान रहे हैं. जिसमें बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन,...

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जेएनयू विवाद: यूनिवर्सिटी में राजनीतिक हस्तक्षेप और स्वायत्तता का सनातन संकट

जेएनयू विवाद जो हॉस्टल मैन्युअल और फीस वृद्धि से शुरू हुआ था, अब छात्रों के संसद भवन मार्च और उन पर बल प्रयोग के बाद यह संसद भवन के बाहर से अन्दर तक पहुंच गया है. हॉस्टल में फ़ीस वृद्धि के बजरिए यह विवाद अब कई व्यवस्थागत विषयों को हमारे सामने खड़ा कर रहा है, तथा मानव संसाधन मंत्रालय की शैक्षिक नीति पर सवाल उठा रहा है. 1986 की शिक्षा नीति...

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मोदी के आरसीईपी पर अच्छे राजनीतिक कदम का मजाक न उड़ाएं, यह इन दिनों दुर्लभ है - योगेंद्र यादव

सात साल से चल रही बातचीत पर मंजूरी की मोहर लगाने के लिए बुलाए गए बैंकॉक सम्मेलन के ऐन बीच में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से बाहर रहने का फैसला लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गहरी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया है. आरसीईपी से बाहर रहना सचमुच बहुत बड़ा फैसला है. आरसीईपी मुक्त-व्यापार का कोई साधारण समझौता नहीं. यह चीन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा पूर्वी एशिया...

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कश्मीर में शर्तों पर मिल रही रिहाई, अनुच्छेद 370 पर बोलने पर भेज दिया जाएगा जेल

नई दिल्ली: बड़े नेताओं के साथ कश्मीर में राजनीतिक रूप से हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा करने के लिए एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं जो देश में संविधान के तहत मिले अधिकारों का खुलेआम दुरुपयोग है. रिहा किए जाने वाले लोगों से जिन बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं उसके तहत रिहाई की यह शर्त है कि वे अनुच्छेद 370 सहित कश्मीर के हालिया हालात...

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विपक्षी धारा का आधारहीन हो जाना-- बद्री नारायण

भारतीय राजनीति में विपक्ष लगातार कमजोर होता जा रहा है। इसे हमें राजनीतिक दलों और उनके नेतृत्व के हिसाब से ही नहीं, इन दलों के सामाजिक आधार के हिसाब से भी देखना होगा। विपक्ष में रहने की आदत और चाहत समाज के आगे बढ़े हुए तबकों में तो कमजोर हुई ही है, गरीबों और पिछड़ों आदि को भी लगातार विपक्ष में बने रहना उनके अस्तित्व के लिए मुश्किल लगता है।...

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