-सत्याग्रह, भारतीय महिलाओं के शिक्षा के स्तर में तो बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन इसके साथ-साथ अब उनके लिए अपने जितना या ज्यादा पढ़ा-लिखा दूल्हा पाना पहले से मुश्किल हो गया है. और इसकी वजह यह नहीं है कि अब वे लड़कों से ज्यादा शिक्षित हो गई हैं. यह परिणाम एक ऐसे शोध के हैं जिसमें 1970 से लेकर 2000 के दशक तक भारत में हुई शादियों की तुलना की गई...
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गरीबों की फिक्र करो
-आउटलुक, महज कुछ महीनों में ही कोविड-19 की महामारी ने समूची दुनिया में उथल-पुथल ला दी। दुनिया भर की सरकारें इस पर काबू पाने मे जुटी हुई हैं। इस संकट में बेरोजगारी बढ़ी है और खाने-पीने और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई भी बाधित हुई। पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में लोगों का निराश होना स्वाभाविक है। फिर भी यह वक्त मानव जीवन-शैली पर चिंतन...
More »किसानों को पैकेज और अध्यादेशों से कोई फायदा नहीं
-आउटलुक, आजादी के बाद पिछले 70 साल से किसान घाटे का सौदा कर रहे हैं। एक तरफ उसकी जोत कम हो रही है, दूसरी तरफ उत्पादन की लागत बढ़ रही है। लेकिन उन्हें उपज बेचने पर लागत भी नसीब नहीं होती है। हर सरकार किसानों की पीड़ा का जिक्र चुनाव प्रचार में तो करती है, लेकिन जीतने के बाद पांच साल के लिए किसानों को भूल जाती हैं। जहां कोरोना से...
More »टूटी हुई खाद्य प्रणाली और किसानों के लिए फ्री मार्केट का औचित्य?
-गांव कनेक्शन, "1980 के दशक में किसान प्रत्येक डॉलर में से 37 सेंट घर ले जाते थे। वहीं आज उन्हें हर डॉलर पर 15 सेंट से कम मिलते हैं," यह बात ओपन मार्केट इंस्टीट्यूट के निदेशक ऑस्टिन फ्रेरिक ने कंजर्वेटिव अमेरिकन में लिखी है। उन्होंने इस तथ्य के जरिये इशारा किया कि पिछले कुछ दशक में किसानों की आमदनी घटने की प्रमुख वजह चुनिंदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती आर्थिक ताकत है।...
More »भारत में ‘गन्स, जर्म्स और स्टील का संकट’ है, लेकिन भारतीय उद्योग जगत ख़ामोश है
-द प्रिंट, ‘डर की वजह से बहुत से लोग बोलते नहीं हैं, लेकिन सवाल ये है, कि किस चीज़ का डर?’ ये सवाल उद्योगपति राजीव बजाज ने, कोरोनावायरस से निपटने के विषय पर, हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ एक बातचीत में किया. ये वीडियो क्लिप भारत के कॉरपोरेट जगत के प्रमुखों के बीच, निजी व्हाट्सएप ग्रुप्स पर व्यापक रूप से वायरल हुई, और उनकी साफ़दिली के लिए...
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