-कारवां, “मनरेगा में हमें यह सरकार अब मुश्किल से बीस दिन ही काम दे रही है. जब हमने मनरेगा में काम करना शुरू किया था तो किसी साल 50-60, तो किसी साल 80 दिनों तक हमें अपने गांव में ही काम मिल जाता था. पर, हमें तो अपना गुजारा करने के लिए साल के सभी दिन काम चाहिए न. इसलिए, कुछ दिन हम अपने खेत और कुछ दिन बड़े किसानों के खेतों...
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पर्यावरण रक्षक खेती है बारहनाजा - बाबा मायाराम
इन दिनों दिल्ली में किसान आंदोलन चल रहा है। खेती-किसानी की चर्चा चल रही है। इस समय तीन नए कृषि कानून व न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा खेती के व्यापक पहलुओं पर भी बात करना भी जरूरी है। मिट्टी- पानी, जैव विविधता व पर्यावरण रक्षक खेती की चर्चा भी जरूरी है। इनमें से एक है उत्तराखंड की पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो मिट्टी-पानी व जैव विविधता का संरक्षण करते हुए...
More »किसानों की आय दोगुनी करने का पीएम मोदी का वादा कैसे होगा पूरा?
-बीबीसी, लॉकडान के दौरान जब 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी 23.9 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत गिरी तो कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था को राहत देने वाला क्षेत्र था. लेकिन इससे भारत के अधिकतर किसानों की आमदनी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. भारत के प्रधानमंत्री का साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा भी अब दूर का सपना ही लगता है. सरकार की नीतियों का असर क्या आगामी बजट में...
More »बाजार भरोसे खेती को छोड़ने के जोखिम
-दैनिक भास्कर, हम सबको चॉकलेट खाना पसंद है लेकिन अगली बार जब आप चॉकलेट का ग्रास लें तो यह याद करिएगा कि कोको की खेती करने वाले एक किसान की औसत दिहाड़ी उस मूल्य से भी कम है जो आपके हाथ में मध्यम आकार की चॉकलेट बार की होती है। पश्चिमी अफ्रीका के कोको किसान की दैनिक आय महज 100 रुपये (1.3 डॉलर) बैठती है! दुनिया में इस समय में जो 210...
More »बादशाह के बरक्स किसानों की ताकत का सच गरिमा के साथ स्वीकारने का विवेक क्या शेष है?
-जनपथ, उसे हर उस चीज का बादशाह माना जाता था जिस पर उसकी नज़र जाती थी. सो उस सर्वशक्तिमान बादशाह केन्यूट [994-1035] ने उमड़ती आ रही लहरों को हुक्म दिया कि वे पीछे लौट जाएं और उसके राजसी चरणों और लिबास को गीला न करें. लेकिन बादशाह की दैविक शक्ति के बावजूद समुद्र की लहरों ने उसका हुक्म नहीं माना. मारे शर्मिंदगी के बादशाह के दरबारियों के सर झुके के झुके...
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