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जीरो बजट कृषि का विचार नोटबंदी की तरह घातक है- राजू शेट्टी

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण है क्योंकि यह कृषि जैसे मुश्किल व्यवसाय को सरलता से प्रकट करता है। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि में जोखिम कम होता है और पूंजी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है। इसे विदर्भ के किसान नेता सुभाष पालेकर द्वारा गढ़ा गया है जिन्हें 2016 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को वैसा ही स्थान मिला...

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पर्यावरण है जीने का अधिकार: गोपाल कृष्ण

भारत में पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती नीतिगत स्तर पर है. पर्यावरण को अगर नुकसान करना बंद कर दिया जाये, तो वह खुद ही सुधरना शुरू कर देता है. एक तरफ तो उसके नुकसान की प्रक्रिया जारी रहती है और साथ ही उसे बचाने की बात होती है. पर्यावरण को नुकसान पहुंचानेवाली नीतियों और परियोजनाओं पर रोक लगायी जाए. उसके बाद ही बचाने के बारे में सोचा जाए. नदी...

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किसानों की खुशहाली का कारगर रोडमैप- जयंतीलाल भंडारी

नये वर्ष 2019 की शुरुआत से ही देश की अर्थव्यवस्था के परि²दृश्य पर किसानों की कर्ज मुक्ति और विभिन्न उपहारों के लिए बड़े-बड़े प्रावधान दिखाई देने की संभावनाओं से कृषि और किसानों की खुशहाली दिखाई देगी। केन्द्र सरकार लघु एवं सीमांत किसानों की आय में कुछ बढ़ोतरी करने की नई योजना भी ला सकती है। तीन राज्यों में किसानों की कर्ज माफी के वचन से कांग्रेस के चुनाव जीतने के...

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समस्या की अनदेखी करते समाधान-- हिमांशु

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने कृषि संकट को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है। इस चुनावी जीत के निश्चय ही कई कारक थे, लेकिन खेतिहरों की दुश्वारियां इन सबमें प्रमुख थीं। यह माना जाता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कृषि संकट को लेकर उदासीन रही है, बल्कि कुछ हद तक उसने इसे बढ़ाया ही है, लेकिन वास्तव में इस...

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आर्थिक मोर्चे पर बढ़ती चुनौतियां - डॉ. जयंतीलाल भंडारी

इन दिनों देश कई मोर्चों पर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें लगातार चिंता का सबब बनी हुई हैं। इसके चलते घरेलू बाजार में भी पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार चढ़ रहे हैं और आलम यह है कि पिछले दिनों सरकार ने इस मोर्चे पर उपभोक्ताओं को राहत देने की जो पहल की थी, वह भी अब पुन: दाम चढ़ने के साथ निस्तेज...

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