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कृषि ऋण माफी के आईने में-- वरुण गांधी

साल 1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद अमेरिका में कपास उत्पादन को फिर से बढ़ावा मिलने का नतीजा यह हुआ था कि वहां भारतीय कपास की मांग काफी कम हो गयी. इसके चलते बंबई प्रेसिडेंसी में किसानों से कपास की खरीद में कमी आयी और भुगतान-संबंधी मांग बढ़ गयी. कर्जदाता इच्छुक किसानों को कर्ज देने में हिचकने लगे या फिर वे बहुत ज्यादा ब्याज पर कर्ज देने...

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स्टार्ट अप के घोड़ों की बाधा-दौड़-- आर सुकुमार

यूनिकॉर्न के साथ मुश्किल यह है कि उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। इनकी बस कल्पना की जा सकती है। अगर आप भी घोड़े की शक्ल और दोनों कानों के बीच माथे पर सींग निकले इस काल्पनिक जानवर को लेकर बुनी गई बेहतरीन कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो मैं पीटर बीगल का उपन्यास द लास्ट यूनिकॉर्न पढ़ने की सलाह दूंगा। यह उन परेशानियों पर तत्काल रोशनी डालता है, जिनसे असली यूनिकॉर्न...

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यह हिंसा विकास को रोकती है-- जयति घोष

भारतीय समाज में औरतों के खिलाफ जारी, बल्कि बढ़ती हुई हिंसा को लेकर चिंतित और भयभीत होने की कई सारी वजहें हैं। निस्संदेह, यह कोई नया लक्षण नहीं है, क्योंकि ऐसी हिंसा भारतीय समाज में ढांचागत और स्थानीय, दोनों रूपों में हमेशा से मौजूद रही है। हमें इस तरह की दलील भी सुनने को मिलती है कि इन दिनों ऐसी अनेक घटनाएं हमें इसलिए सुनने को मिल रही हैं, क्योंकि...

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वापस आए पुराने नोटों के आंकड़ों पर असमंजस

नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद प्रतिबंधित 500 व 1000 रुपए के कितने नोट और धनराशि बैंकों में वापस आए, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है। गैर सरकारी एजेंसियां अपना-अपना आकलन कर रही हैं। बताया जा रहा है कि 95 से 97 फीसद तक प्रतिबंधित नोट वापस आ चुके हैं। यह निश्चित तौर पर सरकार की उम्मीदों से काफी ज्यादा है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि अभी तक भारतीय...

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स्मृति शेष : प्रकृति के पहरेदार का जाना

जाने-माने गांधीवादी और पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे. पर्यावरण के लिए वे तब से काम कर रहे हैं, जब देश में पर्यावरण का काेई विभाग नहीं खुला था. बगैर बजट के उन्होंने देश-दुनिया के पर्यावरण की जिस बारीकी से खोज-खबर ली, वह करोड़ों रुपये बजट वाले विभागों और परियोजनाओं के लिए संभव नहीं हो पाया है. वर्ष 1948 में वर्धा में जन्मे अनुपम प्रख्यात साहित्यकार भवानी...

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