असम बारूद के ढेर पर बैठा है. वहां की पार्टियां इसमें आग सुलगाकर वोट की रोटी सेंक रही हैं. बाकी देश आंख मूंदे बैठा है या सोच रहा है कि जब विस्फोट होगा, तब देखा जायेगा. समस्या पुरानी है, लेकिन संदर्भ नया है. विदेशी अाप्रवासियों का सवाल कई दशकों से असम का नासूर बना रहा है. आजादी के बाद से ही राज्य में देश के भीतर और बाहर दोनों तरफ...
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अभी बाकी है समानता की लड़ाई - तसलीमा नसरीन
सऊदी अरब ने महिलाओं के गाड़ी चलाने पर जारी प्रतिबंध को कुछ दिन पूर्व हटा लिया है। महिलाएं अब अगले साल जून से गाड़ियां चला सकेंगी। यह एक बड़ी खुशखबरी है। 1990 में पहली बार महिलाएं गाड़ी चलाने का अधिकारी मांगने को सड़क पर उतरी थीं। 47 महिलाओं ने रियाद शहर में गाड़ी ड्राइव की थी। उन सबको गिरफ्तार किया गया था। यही नहीं, उनमें से कुछ की तो नौकरी...
More »गौरी लंकेश की हत्या किसने की?-- योगेन्द्र यादव
जबसे उनकी कायराना हत्या की खबर आयी, तबसे बार-बार यह सवाल पूछ रहा हूं. किसी मौत पर हमारी प्रातिक्रिया इस पर निर्भर करती है कि हम मृतक से कितना नजदीकी महसूस करते हैं. यह जरूरी नहीं कि हम मृतक को जानते हों. जिस सड़क से हम रोज गुजरते हैं, जिस ट्रेन से हम रोज सफर करते हैं, उस पर होनेवाले हादसे हमें गहराई से छूते हैं. 'इसकी जगह मैं हो...
More »लोकतंत्र और पूंजी के रिश्ते-- मृणाल पांडे
यह कोई राज नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनाव प्रचार के दिनों से ही अपने धुर दक्षिणपंथी विचारों और उग्र समर्थकों की भीड़ को लेकर विवादों से घिरे रहे हैं. उनकी बेलगाम बयानबाजी को लेकर देश के उदारवादी लोगों और खुद व्हाॅइट हाउस के स्टाफ की बेचैनी अब बढ़ती जा रही है. हाल में वर्जीनिया प्रांत के शारलौट्सविल शहर में (गुलामी प्रथा तथा नस्लवाद के पक्षधरों के प्रतीक)...
More »डिजिटल मीडिया का सच-- अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी
भारतीय लोकतंत्र की व्यापक परिधि में आज भी वह परिपक्वता नहीं है, जो किसी स्वस्थ समाज और लोक कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक है। समाज में गरीबी, कम शिक्षा दर, सांप्रदायिक सोच, जातीय उन्माद, जेंडरगत कुंठा, व्यक्तिगत स्वार्थपरता और पूंजी के शातिराना खेल ने जिस परिवेश को बढ़ाया है, उसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का लगातार क्षरण हो रहा है। जबकि देश में मीडिया के प्रति विश्वसनीयता की लंबी परंपरा रही है।...
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