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निर्मल गंगा की सार्थक धारा- जैको वल्विस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सबसे पवित्र नदी को साफ करने का वादा किया है। वाराणसी से चुनाव लडम्कर एक तरह से उन्होंने इस असंभव से लगने वाले मुद्दे पर अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा दिया। गंगा की जो हालत है, वह भारत के अंतर्विरोधों का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक तरफ तो देश की इस सबसे पावन नदी की लोग पूजा करते हैं, इसके जल को सबसे पवित्र...

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अंबेडकर और संघ परिवार- एम के वेणु

लोकसभा चुनाव के बीच संघ परिवार ने चतुराई से यह बहस छेड़ने की कोशिश की है कि दलितों के आदर्श और भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव अंबेडकर मुसलमानों पर भरोसा नहीं करते थे। अचानक ऐसे बयान आने लगे और टीवी चैनलों पर बहस होने लगी कि वह मुसलमानों के प्रति नकारात्मक सोच रखते थे। एक बेनाम ट्वीटर एकाउंट के जरिये, जो संभवतः भाजपा की ओर से तैयार किया गया है, इस लेखक...

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पूंजीवाद का प्रपंच- सिद्धार्थ वरदराजन

नरेंद्र मोदी आखिर किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारतीय राजनीति में उनके उदय के क्या मायने हैं? 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों का बोझ अब भी उनके कंधों पर है। ऐसे में, सांप्रदायिक राजनीति के ऐतिहासिक उभार के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री का राष्‍ट्रीय पटल पर उदय होते देखना खासा दिलचस्प रहेगा। संघ परिवार के वफादार और हिंदू मध्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आज अगर उनका भक्त बना है,...

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न्याय की नई मरीचिका- विकास नारायण राय

जनसत्ता 7 नवंबर, 2013 : स्त्रियों के उत्पीड़न का एक और क्षेत्र कानून की गिरफ्त में आने को है। पुरुष वर्चस्व के नजरिए से बेहद नाजुक ‘इज्जत’ के नाम पर होने वाली हत्या का मसला फिलहाल उच्चतम न्यायालय के रडार पर है। अगर यौनिक हिंसा, लैंगिक उत्पीड़न का सर्वाधिक अपमानजनक रूप रही है तो ‘इज्जत’ हत्याएं इसका सर्वाधिक बर्बर रूप होती हैं। इसी तरह, घरेलू हिंसा में स्त्री का दासत्व...

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कुप्रबंध की संस्कृति- हरिवंश

देश, वाचाल वृत्ति, बौद्धिक विलासिता, पर-उपदेश वगैरह की ‘लचर जीवन संस्कृति’ से नहीं चलता. आज के भारत में सरकार, राजनीति से लेकर समाज स्तर पर यही जीवन संस्कृति है. अमर्त्य सेन जिस ‘आर्ग्यूमेंटेटिव इंडिया’ (बहस में डूबे भारत) की बात करते हैं, उसे जमीन पर देखें-समझें तो बात ज्यादा स्पष्ट और साफ होती है. मूलत: हम बातूनी लोग हैं, बिना कर्म बात-बहस करनेवाले. किसी के बारे में कुछ भी टिप्पणी....

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