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खाद्य सुरक्षा- अधूरी पहल

महीनों की बातचीत के बाद राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने एक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल की सिफारिश कर दी है। यह बिल मुख्य अनाज के लिए आम लोगों के कानूनी अधिकार को पहले सोचे गए स्तर से भी नीचे ला देता है। और इस तरह परिषद ने भूख समाप्त करने के लिए सर्वजनीन सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से संगठित प्रयास शुरू करने का ऎतिहासिक अवसर खो दिया है। भारत में अनाज...

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बिहार को मालूम नहीं उसके यहां कितने हैं बेघर

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। बिहार सरकार ने मौसम की मार और भुखमरी से बचाने के लिए शहरी बेघरों को आश्रय और भोजन देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट का था, लेकिन राज्य सरकार को यही नहीं मालूम कि उसके शहरों में कितने लोग बेघर हैं? कोर्ट के नोटिस के जवाब में राज्य सरकार ने आर्थिक और प्रबंधकीय दिक्कतें बताते हुए ऐसा करने में असमर्थता जताई है और सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार...

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सरकारी कागजों में स्लम का अकाल

अगर कोई पूछे कि मुंबई महानगर में झोपड़ बस्तियों को हटाने की दिशा में जो काम हो रहा है, उसका क्या असर पड़ा है तो इस सवाल का एक जवाब ये भी हो सकता है- आने वाले दिनों में झोपड़ बस्तियों की संख्या बढ़ सकती है. मुंबई महानगर का कानून है कि जो बस्ती लोगों के रहने लायक नहीं है, उसे स्लम घोषित किया जाए और वहां बस्ती सुधार की योजनाओं...

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डेढ़ लाख बेघर, इंतजाम सिर्फ 4800 का

आशुतोष झा, नई दिल्ली सरकारी गिनती के अनुसार दिल्ली में डेढ़ लाख ऐसे लोग हैं, जिनके पास सिर छिपाने के लिए कोई छत नहीं है। पर सरकारी तंत्र की ओर से इस कड़ाके की ठंड में सिर्फ चार हजार आठ सौ लोगों के लिए रैन बसेरों में इंतजाम है। अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी बेघरों को तत्काल बसेरा देने का आदेश दिया है। पर जो सरकार सालों में बेघरों के लिए छत न जुटा सकी...

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कोसी का कहर

कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...

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