फ्रांस के समाजशास्त्री अलेक्सी डे टॉक्विले और ब्रिटेन के राजनीतिक दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल, दोनों ने 25 साल के अंतराल में लोकतंत्र के दो नए खतरों के प्रति आगाह किया था। पहले का मानना था कि इसमें बहुमत के आतंक के शिकार व्यक्ति के पास बचने का कोई चारा नहीं होता। दूसरे ने इस भय की ओर इंगित किया था कि प्रजातंत्र मात्र एक शासन पद्धति न होकर असंगठित भीड़ की...
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खुली बहस के परे कोई भी विषय नहीं - मृणाल पांडे
ऋग्वेद (8, 2, 24) में मनुष्य देवताओं से पूछते हैं कि सत्य का साक्षात करने वाले ऋषि तो रहे नहीं, आने वाले समय में उनकी जगह कौन लेगा? देवताओं का जवाब है, आने वाले काल में समान स्तर के अनेक ज्ञानी जब बैठकर अपने-अपने ऊह (तर्क) और अपोह (प्रतितर्क) से हर विषय पर बहस को आगे बढ़ाएंगे तो उनके समवेत तर्क-वितर्क ही अंतिम सच का निर्णय करेंगे। एक अग्रगामी लोकतंत्र...
More »पुरुषों को भी चाहिए संरक्षण- संगीता भटनागर
इधर पिछले कुछ समय से महिलाओं द्वारा बलात्कार के झूठे मामलों में अपने पुरुष सहयोगियों को फंसाने की घटनायें चर्चा में आ रही हैं। कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति ने शादी का वायदा करके शारीरिक संबंध स्थापित किये। वह बाद में शादी से मुकर गया। फलां ने डरा-धमका कर या फिर शीतल पेय में नशीला पदार्थ मिलाकर उसे पिलाया और अचेत होने की स्थिति में यौन शोषण किया। कई मामलों...
More »दंड विधान को उदार बनाने का वक़्त-- शशि थरुर
ब्रिटिश शासकों से विरासत में मिली हमारी संसदीय व्यवस्था में कानून बनाने का काम मोटे तौर पर सरकार द्वारा संचालित है। ऐसा प्रावधान नहीं है कि विपक्षी दल विधेयक लाएं और उन्हें पारित कर कानून का रूप देने का प्रयास करें। हालांकि, संसद सदस्य व्यक्तिगत रूप से ऐसा कर सकते हैं। इस प्रावधान को ‘निजी सदस्य के विधेयक' कहा जाता है। संसद चल रही हो तो हर शुक्रवार की दोपहर...
More »अदालत बनाम हुकूमत की नौबत! - संतोष कुमार
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को असंवैधानिक ठहराने के सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद से ही इस पर सरकार और न्यायपालिका के बीच ठनी हुई है। सर्वोच्च अदालत कॉलेजियम प्रणाली पर अडिग है, अलबत्ता उसने इसमें सुधार के लिए लोगों से सुझाव जरूर मांगे हैं। सरकार भी इस मत पर कायम है कि एनजेएसी को असंवैधानिक ठहराने का फैसला संसदीय संप्रभुता को झटका है। वर्ष 1788 में प्रकाशित 'फेडरलिस्ट...
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