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विषमता की बढ़ती खाई-- जयराम शुक्ल

मुट्ठी भर गोबरी का अन्न लेकर लोकसभा पहुंचे डॉ राममनोहर लोहिया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूसे कहा- लीजिए, आप भी खाइए इसे, आपके देश की जनता यही खा रही है। पिछले दिनों जब विश्व के भुखमरी सूचकांक (हंगर इंडेक्स) में 119 देशों में भारत के सौवें स्थान पर होने के बारे में पढ़ा तो 1963 का नेहरू-लोहिया का वह प्रसंग जीवंत हो गया, जिसमें लोहिया ने तीन आने बनाम पंद्रह...

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प्रोत्साहन पैकेज के फायदे -- संदीप बामजई

कृषि, आवास निर्माण क्षेत्र, रेलवे, सड़क, आदि में इस पैकेज के इस्तेमाल से जीडीपी की दर अच्छी हो जायेगी. अगर सरकार अभी पैकेज का ऐलान करती है, तो उम्मीद है कि अगले साल की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च 2018) में हमारी जीडीपी छह प्रतिशत को पार कर सकती है.    बीते बुधवार को हुई कैबिनेट मीटिंग के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार की नजर अर्थव्यवस्था पर है और...

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प्लास्टिक कचरे से मुक्ति कब-- ज्ञानेन्द्र रावत

प्लास्टिक कचरे का सवाल अकेले हमारे देश के लिए ही नहीं, वरन् समूचे विश्व के लिए अहम् है. वह बात दीगर है कि यह समस्या हमारे यहां ज्यादा गंभीर है. स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिक युक्त कचरे ने गांव, कस्बा, नगर, महानगर यहां तक देश की राजधानी तक को चपेट में ले लिया है. सागर और महासागर भी नहीं बच सके हैं. प्लास्टिक कचरा जानवरों के लिए तो काल बन...

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रोजगार देनेवाला एफडीआइ आये -- वरुण गांधी

भारत की अर्थव्यवस्था में एक अनोखा अंतर्विरोध दिख रहा है. बीते कुछ दशकों में, खासकर विकासशील देशों में पाया गया है कि मैक्रो इकनॉमिक्स में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए एफडीआइ रामबाण है. ज्यादा एफडीआइ आने का मतलब देश की आर्थिक नीतियों की स्वीकार्यता समझा जाता है और अर्थव्यवस्था की तंदुरुस्ती का संकेतक माना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहने के बाद बीते तीन वर्षों में...

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सत्ता का संदेश- जय किसान जवान-- मुकेश भारद्वाज

आजादी के बाद भूमि सुधार की बात तो हुई लेकिन यह किसी पार्टी के एजंडे में नहीं रहा। विषमताओं और गैरबराबरी वाले भारत में इस बुनियादी मुद्दे को भुला महाजनों और मानसून पर निर्भर किसानों को विश्व बाजार के मंच पर अकेला छोड़ दिया गया। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर सभी सरकारें चुप हैं। जब लोगों के जीने-मरने का सवाल पैदा हो रहा हो तो उनके सामने नोटबंदी और डिजिटल...

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