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उम्मीद जगाती है पर्यावरण संरक्षण की यह सतर्कता

अब जब साल खत्म होने को है, सामान्य सी बात है कि हम अतीत पर नजर डालें, सोचें कि क्या अच्छा हुआ, क्या नहीं। बेहतर तो यही होगा कि हम यह देखें कि पर्यावरण और हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए क्या पहल हुई? पर्यावरण सूचकांक भले ही मंदा दिखे, लेकिन इस एक साल में कुछ ऐसा भी हुआ, जो उम्मीद जगाता है। यह उदाहरण उत्साहित करने वाला है- अमेरिकी मूल...

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जलवायु: मौसम का पक्ष-विपक्ष-- अखिलेश आर्येंन्दु

धूप-छांव, गरमी-बरसात का आना-जाना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी है। धरती पर जीवन के लिए ये मौसम उतने ही जरूरी हैं जितना की हमें जिंदा रहने के लिए जल और भोजन। यों तो हमारी जलवायु के हिसाब से बारह महीने में तीन मौसम-जाड़ा, गरमी और बरसात प्रमुख हैं। उनका अपना अलग रंग-ढंग है। हर मौसम की अपनी खामी और खूबी होती है। सभी मौसमों में हमें कुछ सुखद अहसास होते...

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ऊर्जा जरूरतें बनाम विकास का रास्ता-- रमेश सर्राफ धमोरा

भारत में हर साल 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 लागू किया था। इस अधिनियम में ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना, पारंपरिक स्रोतों के संरक्षण के लिए नियम बनाना आदि शामिल था। भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने का मकसद लोगों को ऊर्जा के महत्त्व के...

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प्रदूषण की चपेट में समुद्री जीवन-- अरविन्द कुमार सिंह

हाल ही में ‘नेचर जियोसाइंस' पत्रिका का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि वायु प्रदूषण की वजह से समुद्री जीवन विषैला बन रहा है। यह खुलासा स्पेन के वैज्ञानिकों ने किया है। उनके शोध के मुताबिक जीवाश्म र्इंधन का उपयोग, औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन और जंगल की आग समुद्री जीवन को जहरीला बना रहे हैं। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि इनसे उत्सर्जित पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएएचएस) नामक घातक रसायन...

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संकट में वन्य जीव-- रीता सिंह

वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक...

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