गृह मंत्रालय के अनुसार, एक हिन्दू के मुकाबले किसी ईसाई के आत्महत्या करने की संभावना डेढ़ गुना ज्यादा है। जबकि देश की विभिन्न जातियों में से आदिवासी और दलित सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। एक आरटीआई के जवाब में यह खुलासा हुआ है कि गृह मंत्रालय ने आत्महत्याओं की जाति और धर्म के आधार पर अलग गणना कराई थी। 2014 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने पहली बार आत्महत्याओं का...
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आरक्षण की आग में झुलसता समाज- नीरजा चौधरी
कृषक जातियों में बेचैनी तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि खेती-किसानी अब मुनाफे का काम नहीं रही। उनके बच्चों के पास तकनीकी तालीम भी नहीं है, जिससे वे नए जमाने की नौकरियां पा सकें। ऐसे में राजनीतिक दांव-पेच उन्हें और अधीर कर रहे हैं। जाति-युद्ध की तरफ बढ़ती आग को रोकने के लिए फौरन कदम उठाए जाने चाहिए। हाल के घटनाक्रमों पर पेश है वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का विश्लेषण पिछले...
More »पीछे छूट गया रोजगार का सवाल- हरिवंश चतुर्वेदी
आर्थिक उदारीकरण के दौर में जिन राज्यों के आर्थिक विकास की दर तेज रही और जिन्हें समय-समय पर एक मॉडल की तरह पेश किया गया, वहां अब सामाजिक- आर्थिक स्थिति विस्फोटक हो रही है। पिछले एक वर्ष में हरियाणा के जाटों, गुजरात के पटेलों, महाराष्ट्र की मराठा जातियों और आंध्र प्रदेश में कापू जाति के लोगों ने खुद को अन्य पिछड़ी जातियों में शामिल किए जाने की मांग को लेकर...
More »हिंसा झेलतीं महिलाओं का मौन- आकार पटेल
आठ मार्च पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर मुझे महिलाओं के विषय में कुछ लिखना उपयुक्त लगा, जो हमारी आबादी में सर्वाधिक कमजोर तथा भेदभाव की शिकार रही हैं. अपने भाषण में जेएनयू का बचाव करते हुए उसके छात्र नेता कन्हैया कुमार ने दो ऐसी बातें कहीं, जो मुझे मालूम न थीं. पहली, यह एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसके छात्र...
More »शिक्षा, स्वच्छता और सशक्तीकरण- मणिशंकर अय्यर
प्रसिद्ध वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके उस फैसले पर पुनर्विचार करने अपील की है, जिसमें पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों की न्यूनतम योग्यता तय करने के हरियाणा सरकार के फैसले को सही ठहराया गया है। हमारे लोकतंत्र का आधार वयस्क मताधिकार है। इसमें हर किसी के पास एक वोट देने का अधिकार है। किसी के पास एक से ज्यादा वोट देने का अधिकार नहीं है। इस अधिकार...
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