एक्शनएड एसोसिएशन (एएए) द्वारा मई 2020 के आखिर तक तीसरे चरण के लॉकडाउन में राष्ट्रीय स्तर पर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर श्रमिकों के बीच सर्वेक्षण (14 मई और 22 मई, 2020 के बीच) किया है, जिसमें महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों सहित अनौपचारिक श्रमिकों के जीवन और आजीविका में आए बदलावों और प्रभावों, उनके द्वारा अनुभव की गई रोजी-रोटी की अनिश्चितता और उससे निपटने के लिए उनके संघर्षों को दर्ज किया...
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भारतीय जीडीपी में 2020-21 की पहली तिमाही में 23.9% की रिकॉर्ड गिरावट, राजकोषीय स्थिति भी बेहद खराब
द प्रिंट, कोविड-19 संकट के बीच देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में 23.9 प्रतिशत की भारी गिरावट आयी है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े सोमवार को जारी किए. इन आंकड़ों में जीडीपी में भारी गिरावट दिखी है. सकल घरेलू उत्पाद में इससे पूर्व वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. सरकार ने कोरोनावायरस संक्रमण की...
More »मोदी सरकार के प्रोजेक्ट डॉल्फिन से पर्यटन नहीं बढ़ सकता क्योंकि गंगा की डॉल्फिन फिल्मी नहीं
-द प्रिंट, देश के नेतृत्व से व्यावहारिक विचार की आशा रहती है और वे महान विचार की जिद पर अड़े रहते हैं. एक कहानी सुनिए– दो दशक पहले की बात है. 1989 के दिसंबर की सर्दियां थीं. देश में कुछ महीनों वाले प्रधानमंत्रियों का दौर शुरू हो गया और उस समय जिम्मेदारी संभाल रहे थे राजा मांडा वीपी सिंह. उन्हें बताया गया कि पूर्ववर्ती राजीव गांधी ने गंगा में एक कछुआ सेंचुरी का...
More »भीमा कोरेगांव: बॉम्बे हाईकोर्ट का सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को ज़मानत देने से इनकार
-द वायर, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को जमानत देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया. जस्टिस आरडी धानुका की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस साल जून में दायर सुधा भारद्वाज की अपील खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने विशेष अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें स्वास्थ्य समस्याओं के आधार पर उन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज...
More »असली सवाल तो शिक्षा की लागत, टैक्स और कीमत के हैं जिन पर उसकी गुणवत्ता टिकी है
-इंडिया टूडे, मरीजों ने महंगे और घटिया खाने पर अस्पताल प्रबंधन को घेरा तो चालाक निदेशक ने बहस शुरू करा दी. मांसाहार बनाम शाकाहार, काली दाल बनाम पीली दाल, चना बनाम गेहूं को लेकर मोर्चे बंध गए. इतिहास खोदा जाने लगा. इस बीच अस्पताल का निजाम नई कंपनी को मिल गया, जिसने अच्छे भोजन की महंगी दर तय कर दी. कुछ लोग उसे खरीद पाए, बचे लोग सड़े दाल-चावल पर लौट...
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