जनसत्ता 18 जनवरी, 2013: स्त्री की हिफाजत, हैसियत, बराबरी के किसी मुद्दे पर इतना बड़ा तूफान भारतीय समाज में शायद पहले कभी न खड़ा हुआ हो। दिल्ली में ही लोग सड़कों पर नहीं उतरे, मणिपुर, जम्मू, चेन्नै से लेकर मुंबई, कोलकाता आदि शहरों में भी आक्रोश और पश्चाताप के अलग-अलग स्वर सुनने को मिले। हमारी सामाजिक गिरावट की विडंबना का एक नमूना यह भी रहा कि फिजा में फैली फांसी की मांग...
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उषा से आशा...
राजस्थान के अलवर में रहने वाली ऊषा चाउमार ने अपने साथ सैकड़ों स्त्रियों को सिर पर मैला ढोने की प्रथा से छुटकारा दिलाया. विकास कुमार की रिपोर्ट. ऊषा पहले तो बात करने में खुलती ही नहीं. बेहद औपचारिक तरीके से दुआ-सलाम और फिर इधर-उधर की बातें करती हैं. लेकिन बार-बार अपने बारे में बताने का आग्रह करने पर जब वे अनौपचारिक होती हैं तो फिर बोलती ही जाती हैं. ढेरों बातें एक ही सांस...
More »गरीबों की पहुंच से ऊपर हो रही है दिल्ली- मनोज मिश्र
नई दिल्ली । दिल्ली और एनसीआर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) को आम की बजाए खास आदमी का शहर बनाने की तैयारी हो रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि एनसीआर के कई इलाके उजड़ने के कगार पर हैं। दिल्ली के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो दिल्ली के ज्यादातर इलाके स्लम जैसे बनते जा रहे हैं। 1483 वर्ग किलोमीटर की दिल्ली का महज पांचवा हिस्सा ही रिकार्ड में बचा है, जिसे...
More »पेयजल का 74 फीसदी हिस्सा सीवर का पानी!
आगरा. आगरा और मथुरा के घरों में आ रहे पेयजल का 74 फीसदी हिस्सा सीवर है। इसे साफ कर ‘जहरीला’ पेयजल के रूप में परोसा जा रहा है। सिंचाई विभाग के रिकॉर्ड से चौंकाने वाली बात सामने आई है। रिकॉर्ड के मुताबिक पिछले सप्ताह यमुना में दिल्ली चला 101 क्यूसेक पानी मथुरा के...
More »गुजरात के विकास का सच
जनसत्ता 6 नवंबर, 2012: अमिताभ बच्चन जब भी रेडियो और टेलीविजन पर एक विज्ञापन ‘खुशबू गुजरात की’ करते हैं तो उनकी दिलकश आवाज और लहजे से एक बार तो मन करता है कि ‘गुजरात-2002’ को भूल कर एक साधारण पर्यटक की तरह गुजरात घूमा जाए। नरेंद्र मोदी ने, विशेषकर 2002 के बाद, मीडिया में अपनी और गुजरात की छवि सुधारने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। दरअसल, 2002 के दंगों के एक वर्ष बाद...
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