जनसत्ता 5 जून, 2013: दलितों के अधिकारों की जानकारी हासिल करने के लिए सूचनाधिकार के तहत डाले गए आवेदन पर जानकारी मिलने में कितना वक्त लगता है? यों तो नियत समय में जानकारी मिल जानी चाहिए, मगर आप गुजरात जाएं तो वहां कम से कम तीन साल का वक्त जरूर लग सकता है और वह भी तब जब आप सूचना हासिल करने के लिए राज्य के सूचना आयोग के आयुक्त...
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भूख की भाषा और शास्त्र - सुधीश पचौरी
जनसत्ता 30 मई, 2013: हमारे समकालीन सोच-विचार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ‘गरीब' के बारे में सिर्फ ‘अमीर' (इस प्रसंग में ‘एलीट') विचार करते हैं। गरीब अपनी गरीबी के बारे में विचार करता नहीं पाया जाता। अपने बारे में इस कदर ‘विचार विहीन' होने के बारे में भी गरीब कभी नहीं बोलता। यह बात भी अमीर ही बताते हैं कि गरीब अपनी गरीबी के बारे में इस कारण विचार...
More »खुद लाना होगा खेतों तक पानी- पुष्यमित्र
झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से भरा पूरा राज्य है. यहां बारिश भी भरपूर होती है और नदियां और दूसरे जल निकायों में पानी भी ठीक-ठाक रहता है. इसके बावजूद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रबी में कुल खेती योग्य रकबे के बीस फीसदी जमीन पर ही खेती हो पाती है. इसकी वजह है कि यहां की अधिकांश खेती मानसून पर निर्भर है और लोगों के पास दूसरी फसल लेने के लायक पानी...
More »अर्थशास्त्र की ऊंची मीनार से कुपोषण मिटाने की यह कवायद....
भारतीयों को विवाद-प्रिय माना जाता है और हमारी यह विवादप्रियता एक बार फिर से उठान पर है ! गरीबी-रेखा और गरीबों की तादाद के बारे में लंबे समय तक वाक्युद्ध में उलझे रहने के बाद, प्रसिद्ध अनिवासी भारतीय(एनआरआई) अर्थशास्त्रियों ने एक बार फिर से विवाद छेड़ा है कि भारत में कुपोषण का विस्तार कितना है। पहले योजना आयोग ने गरीबों की संख्या को कागजी तौर पर घटाने की कोशिश की...
More »नकली नक्सली-अनुपमा और निराला की रिपोर्ट.
झारखंड में माओवादी कमजोर हुए हैं मगर उनके इस सबसे बड़े गढ़ में माओवाद के नाम पर चलने वाले आपराधिक संगठनों की कोई कमी नहीं है. अनुपमा और निराला की रिपोर्ट. फोटो: शैलेंद्र पांडेय 27 मार्च, 2013. झारखंड में चतरा जिले का लकड़मंदा गांव. बिहार सीमा के पास बसे इस इलाके का सन्नाटा आधी रात को अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से टूट गया. पास के जंगल में हो रही भयानक गोलीबारी...
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