भारतीय रिजर्व बैंकऔर भारत सरकार के बीच चल रही रस्साकशी धीरे-धीरे बाहर आ रही है। सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच थोड़ा-बहुत टकराव सिस्टम के लिए अच्छा होता है। मसलन, हर सरकार यह चाहती है कि ब्याज दरें कम से कम हों क्योंकि कम ब्याज दरों पर लोग जमकर कर्ज लेंगे और इससे अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगी, लेकिन सरकारें यह जरूरी बात या तो भूल जाती हैं या फिर उसकी...
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बौद्धिक स्वतंत्रता और राष्ट्रहित- मणींद्र नाथ ठाकुर
ऐसा क्या हो गया है कि भारत के बुद्धिजीवियों को राष्ट्रविरोधी होने का खिताब मिल रहा है? क्या स्वतंत्र चिंतन, सरकारी नीतियों की आलोचना राष्ट्रहित में नहीं है? आखिर उन्हें क्यों लगता है कि व्यवस्था गरीबों के हित में नहीं है? और यदि यह सही है, तो फिर व्यवस्था को ठीक करने का क्या उपाय किया जा सकता है? क्या यह भारतीय बुद्धिजीवियों का दायित्व नहीं है कि वे...
More »हाशिमपुरा- इकतीस साल बाद-- विभूति नारायण राय
बुधवार को जब उच्च न्यायालय ने हाशिमपुरा नरसंहार के सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई, तो 31 साल पुरानी इस दुखद घटना के सारे दृश्य एक के बाद एक मेरी आंखों के सामने से गुजरने लगे। कुछ अनुभव ऐसे होते हैं, जो जिंदगी भर आपका पीछा नहीं छोड़ते। दु:स्वप्न की तरह वे हमेशा आपके साथ चलते हैं। कई बार तो कर्ज की तरह आपके सीने पर सवार रहते...
More »श्रमिकों की गरिमा व बिहार की अस्मिता-- मिहिर भोले
बिहार छोड़े मुझे पच्चीस वर्ष हो गये. तब से गुजरात में ही रहता हूं. फिर भी विभिन्न कारणों से लगातार बिहार आता-जाता रहता हूं. इस दौरान लोग-बाग अक्सर मुझसे गुजरात के बारे में प्रश्न किया करते हैं और मैं आदतन पूरी सच्चाई और निष्पक्षता से उसकी खूबियों और कमजोरियों की चर्चा करता हूं. चूंकि मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं. मैं एक शिक्षक हूं, मेरी वैचारिक प्रतिबद्धता सिर्फ मेरे अपने अनुभव...
More »एक प्रगतिशील फैसले के बाद-- एस श्रीनिवासन
देश का सबसे शिक्षित सूबा केरल इन दिनों उबल रहा है। विवाद सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर है, जिसमें सबरीमाला के अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को पूजा-अर्चना की अनुमति दी गई है। इस फैसले का सांविधानिक पहलू भी है और सांस्कृतिक भी। लेकिन चुनावी मौसम के करीब होने के कारण इस मसले को विशुद्ध राजनीति ने हथिया लिया है। कानूनी लिहाज से यह विवाद एक व्यक्ति...
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