दिसंबर बीतते हुए पिछले कई वर्षों का लेखा-जोखा आप से आप करने लगता है. ब्रेक्जिट, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव, सीरिया का गृहयुद्ध, नोटबंदी, राष्ट्रगान, राष्ट्रभक्ति, इन सबका हिसाब लगाने के बाद भी एक दिसंबर बचा रहता है, जो कई वर्षों से नहीं बीता. न वह नया होता है न पुराना. वह बस टंग गया है दीवार पर. उसकी तारीखें बदलती हैं, लेकिन उसकी तासीर नहीं बदलती. यह हमेशा उतना ठंडा...
More »SEARCH RESULT
नोटबंदी के दौर में बोलेरो शादी-- विभूति नारायण राव
पिछले चालीस दिनों में नोटबंदी ने देश की तरह मुझे भी तरह-तरह के अनुभव दिए हैं। देश दो खेमों मे बंटा दिख रहा है। एक तरफ देशभक्त हैं, जिनकी बांछें खिली हुई हैं और जो बता रहे हैं कि बस देखते रहिए, देश से काला धन, जाली नोट और आतंकवाद खत्म होने ही वाले हैं। यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ ही उनकी मुस्कान धीरे-धीरे कमजोर पड़ती...
More »ऊर्जा जरूरतें बनाम विकास का रास्ता-- रमेश सर्राफ धमोरा
भारत में हर साल 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 लागू किया था। इस अधिनियम में ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना, पारंपरिक स्रोतों के संरक्षण के लिए नियम बनाना आदि शामिल था। भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने का मकसद लोगों को ऊर्जा के महत्त्व के...
More »विकास की परिभाषा में बच्चे कहां!-- अनुज लुगुन
हमारा समाज एक ऐसी दिशा की ओर बेलगाम अग्रसर होता जा रहा है, जहां सब कुछ या तो बहुसंख्यक के लिए ही हो रहा है, या आवाज उठा सकनेवालों के लिए ही हिस्सेदारी बच रही है. जो मूक हैं, या मासूम हैं, उनके लिए कुछ भी नहीं बच रहा है. आज प्रकृति-जीव और बच्चे सामूहिक संहार के शिकार हो रहे हैं, क्योंकि वे अपनी भाषा मनुष्यों को समझा नहीं सकते....
More »तब कैसे याद किए गए थे अंबेडकर- रामचंद्र गुहा
चौदह अक्तूबर, 2016 को भीम राव अंबेडकर के बौद्ध धर्म अपनाने की 60वीं सालगिरह थी। मगर यह मौका राजनीतिक वर्ग के संज्ञान से अछूता रहा, खासकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नजरों से, जो मौजूदा दौर में देश के दो सबसे ताकतवर व्यक्ति हैं और जिन्होंने हाल के महीनों में अंबेडकर की बढ़-चढ़़कर तारीफें की हैं। जहां तक मुझे दिखा, न तो सोनिया या राहुल गांधी ने, न किसी...
More »