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कोरोना वायरस के बारे में कितना जानते हैं आप और क्या जानना है जरूरी!

-गांव कनेक्शन, नोवेल कोरोना वायरस के बारे में कई तरह की बातें सोशल मीडिया, वाट्सऐप और इंटरनेट के माध्यम से फैल रही हैं। इनमें से कुछ सही हैं, तो बहुत-सी बातें बिल्कुल निराधार हैं। ऐसे समय में जब कोरोना वायरस महामारी बनकर दुनियाभर में हजारों लोगों की जान ले चुका है, तो इससे जुड़े कुछ अनिवार्य पहलुओं के बारे में जानना जरूरी है। संक्रमण: वायरस गले और फेफड़ों में उपकला (epithelial) कोशिकाओं को...

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कोरोना: महामारी के दौर में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी ज़रूरी है

- द वायर,  किसी वैश्विक महामारी का मनोवैज्ञानिक परिणाम सामाजिक ताने-बाने पर भी असर डालता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के पहले महानिदेशक ब्रॉक चिशहोम, जो कि एक मनोरोग चिकित्सक भी थे, की प्रसिद्ध उक्ति है : ‘बगैर मानसिक स्वास्थ्य के, सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य नहीं हो सकता है.’ उनके ये शब्द इस विचार का समर्थन करते हैं. सालों के रिसर्च के बाद इस बात को लेकर कोई शक नहीं रह गया है कि...

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तीसरी दुनिया: वायरस पर नियंत्रण के बहाने दुनिया को एबसर्ड थिएटर में बदलती सरकारें

-मीडियाविजिल, लंदन से प्रकाशित दैनिक ‘इंडिपेंडेंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जाहिर की है कि कई देशों की सरकारें कोरोना वायरस पर नियंत्रण के बहाने अपने उन कार्यक्रमों को पूरा करने में लग गयी  हैं जिन्हें पूरा करने में जन प्रतिरोध या जनमत के दबाव की वजह से वे तमाम तरह की बाधाएं महसूस कर रहीं थीं। रिपोर्ट के अनुसार 16 मार्च को संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध विशेषज्ञों...

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सवाल यह है कि पहले कभी ये मजदूर आते-जाते क्यों नहीं दिखे?

-गांव कनेक्शन, पूरा भारत लॉकडाउन में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील कि 21 दिन तक कोरोना से बचाव के लिए वो घरों के बाहर लक्ष्मण रेखा खींच लें। होटल-ढाबे बंद हैं, बस-ट्रेनें बंद हैं, ऐसे में दूसरे राज्यों में फँस चुके लाखों मजदूर सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े हैं, यह मजदूर क्या चाहते हैं और क्यों इन मजदूरों की ऐसी दशा हुई,...

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यहां से देखाेः साइंटिफिक टेम्पर की “सामूहिक हत्या”!

मीडियाविजिल, “पिछले कुछ साल में गैर-जिम्मेदार नेताओं ने जान-बूझ कर विज्ञान, सरकारी संस्थाओं और मीडिया से जनता का विश्वास डिगाया है. ये ग़ैर-ज़िम्मेदार नेता अधिनायकवाद का रास्ता अपनाने को लालायित हैं, उनकी दलील होगी कि जनता सही काम करेगी इसका यकीन नहीं किया जा सकता.” इज़रायली दार्शनिक युवाल नोह हरारी ने प्रसिद्ध अखबार फाइनेंशियल टाइम्स में बीते 20 मार्च को लिखे अपने लंबे लेख में कुछ बहुत ही मार्के की बातें कही...

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