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बिहार, उप्र व छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की वजह से पिछड़ रहा है देश : अमिताभ कांत

नई दिल्ली। नीति आयोग के सीईओ का कहना है कि देश के दक्षिणी और पश्चिमी राज्य तो तेजी से विकास कर रहे हैं, लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की वजह से देश पिछड़ रहा है। सोमवार को दिल्ली के जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में अब्दुल गफ्फार खान पर आयोजित पहले मेमोरियल लेक्चर पर उन्होंने यह बातें कहीं। उनका कहना है कि पूर्वी भारत के राज्य खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश,...

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दीर्घकालिक राजनीति की मांग-- प्रो. योगेन्द्र यादव

एक शे'र है- किसी का नाम न लो, बेनाम अफसाने बहुत से हैं.' प्रधानमंत्री के लंदन उवाच को सुनकर बरबस यह शे'र याद आ गया. प्रधानमंत्री ने अपना मौन तोड़ा और कुछ कहा भी नहीं. न बच्ची का नाम लिया (वह तो शायद ठीक ही था), न कठुआ और उन्नाव का नाम लिया, न ही यह माना कि इन दोनाें जगह उनकी पार्टी की सरकार है, न ही यह स्वीकारा...

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सूचना के संजाल में छीजती संवेदना--- दिनेश कुमार

समाज में साहित्य के लिए जगह लगातार कम होती जा रही है। प्राय: ऐसा प्रतीत होता है कि समाज को साहित्य की कोई जरूरत नहीं है। समाज की प्राथमिकता से साहित्य का गायब होना चिंता से अधिक चिंतन का विषय है। साहित्य के नए पाठक बन नहीं रहे हैं और जो पुराने हैं वे धीरे-धीरे विदा हो रहे हैं। हम एक तरह से क्रमश: साहित्य विहीन समाज की ओर बढ़...

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गरीबी का दंश, सिर छिपाने को झोपड़ी, स्ट्रीट लाइट में पढ़ाई

धमतरी। सरकार छात्र-छात्राओं के बेहतर भविष्य के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती है। इसके बावजूद होनहार छात्र झोपड़ी में रहकर स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ाई-लिखाई करने मजबूर हैं। बमुश्किल दो वक्त का खाना मिल पाता है। कई बार तो रात में भूखा सोना पड़ता है। ग्राम पंचायत डोमा में निवासरत शत्रुघन सोनवानी और उसके चार बच्चे की यही दास्तान है, जो शासन-प्रशासन की योजनाओं को मुंह चिढ़ाती...

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समावेशी विकास के प्रतिमान-- अनंत कुमार

भारत की अलौकिक सुंदरता इसकी संस्कृतियों, परंपराओं, लोगों, प्राकृतिक दृश्यों, भाषाओं आदि की विविधता में निहित है. इसका विशाल विस्तार भी ऐसी चुनौतियां प्रस्तुत करता है, जो केवल इस देश के लिए विशिष्ट हैं. अत: इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे उपायों की जरूरत है, जो प्रत्येक स्थिति के लिए उपयुक्त हों. भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडा में अन्य के साथ-साथ गरीबी, सतत विकास, स्वास्थ्य, पोषण, लैंगिक...

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