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अकथ कहानी खेत की-- राकेश दीवान

जून महीने के बीस दिनों में हुर्इं चालीस से अधिक किसानों की आत्महत्याओं का किसी के पास कोई जवाब नहीं है। किसान आंदोलन से निपटने के लिए सरकार को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य' पर केवल तुअर, मूंग और उड़द खरीदने और आठ रुपए किलो में प्याज खरीदने और फिर भंडारण की कमी के चलते सड़ाने की तजवीज भर नजर आई। आज भी किसानी ‘अन-स्किल्ड' यानी अकुशल श्रम भर मानी जाती है...

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किसानों से क्रूरता की राजनीति-- पवन के वर्मा

शिवराज सिंह चौहान संभवतः एक सदाशयी व्यक्ति हैं. व्यापम घोटाले के गहरे दाग के बावजूद, सामान्यतः उन्हें एक अच्छा प्रशासक माना जाता रहा है. यह भी संभव है कि अपने शासन में पुलिस की गोलियों से छह किसानों की नृशंस हत्या से वे वस्तुतः क्षुब्ध हों. मंदसौर में अमन और आम हालात की बहाली के लिए किया गया उनका एकदिनी अनशन उनके समर्थकों के अनुसार एक सद्भावनापूर्ण संकेत था, हालांकि...

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रोजगार देनेवाला एफडीआइ आये -- वरुण गांधी

भारत की अर्थव्यवस्था में एक अनोखा अंतर्विरोध दिख रहा है. बीते कुछ दशकों में, खासकर विकासशील देशों में पाया गया है कि मैक्रो इकनॉमिक्स में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए एफडीआइ रामबाण है. ज्यादा एफडीआइ आने का मतलब देश की आर्थिक नीतियों की स्वीकार्यता समझा जाता है और अर्थव्यवस्था की तंदुरुस्ती का संकेतक माना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहने के बाद बीते तीन वर्षों में...

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रोजगार सृजन की चुनौती--- अरविन्द जयतिलक

देश की अर्थव्यवस्था भले ही कई देशों के मुकाबले दोगुनी वृद्धि कर रही हो लेकिन युवाओं के लिए रोजगार सृजित करने के मामले में देश पिछड़ रहा है। हाल ही में आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन की ताजा रिपोर्ट ने बताया है कि देश में पंद्रह से उनतीस वर्ष के तीस प्रतिशत से अधिक युवाओं के पास रोजगार नहीं है। पिछले वर्ष श्रम मंत्रालय की इकाई श्रम ब्यूरो के रिपोर्ट...

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रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज

सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...

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