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बंधुआ बचपन-प्रियंका दुबे

करीब साल भर पहले तहलका ने तस्करी के शिकार उन बच्चों की व्यथा उजागर की थी जिनसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों में बंधुआ मजदूरी करवाई जाती है. हाल में ऐसे दो बच्चों की बरामदगी ने न सिर्फ फिर हमारी पड़ताल की पुष्टि की है बल्कि यह भी ध्यान दिलाया है कि तस्करी के इस व्यवस्थित नेटवर्क के खिलाफ व्यापक कार्रवाई होनी चाहिए. प्रियंका दुबे की रिपोर्ट. पिछले 11 महीने से गन्ने...

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सपनों के उत्पादन का धंधा- एम जे अकबर

भारतीय लोकप्रिय साहित्य में भूत-कथाओं को तवज्जो क्यों नहीं दी जाती? इसका सीधा-सा कारण है कि भारत में अखबारों के बीच काफी मारा-मारी है. ‘बेबुनियाद और असंभव’ की कल्पना के मामले में कौन सा लेखक दिन की खबरों से मुकाबला कर सकता है? भारत में, जहां खुद को भगवान घोषित करनेवाले बदमाशों की कमी नहीं है, क्या हमें भूत-कथाएं लिखनेवाले बाम स्टोकर या ड्रैक्यूला के किस्सों की कोई जरूरत है!...

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चालीस करोड़ औरतों का हौसला- सुभाषिनी अली

अभी कुछ दिनों पहले देश के सर्वोच्च निर्वाचित पद के एक प्रत्याशी ने इस पर खेद प्रकट किया कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने हमारे प्रधानमंत्री को देहाती औरत कहकर उनका अपमान किया है। अब इस बात की सफाई दी जा चुकी है कि नवाज शरीफ ने ऐसा नहीं कहा, लेकिन अभी तक इसकी सफाई नहीं दी गई है कि प्रत्याशी जी देहाती औरत शब्द को अपमानजनक क्यों मानते हैं। देश की चालीस करोड़...

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जरूरत रोजगार के अवसर बढ़ाने की- नयन चंदा

अपने देश के 80 करोड़ गरीब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा मुहैया करवाने की शुरुआत भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस प्रकार की सामाजिक सुरक्षा   वाली लोक कल्याणकारी योजना शुरू करना नैतिक रूप से सराहनीय है, लेकिन आर्थिक नजरिए से यह समस्या पैदा करने वाली भी है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए शुरू की गई  ऐसी योजना को  निरंतर बनाए रखने और उसके लिए पैसा जुटाने के लिए ...

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आज के संदर्भ में ग्राम-स्वराज- भारत डोगरा

जनसत्ता 2 अक्तूबर, 2013 : गांधीजी ने ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। लेकिन आजादी मिलने के बाद जो विकास नीति अपनाई गई, उसमें इस सपने के लिए कोई जगह नहीं थी। इसीलिए ग्रामीण इलाकों से शहरों की तरफ पलायन हमारे नीति नियंताओं को कभी चुभा नहीं। सकल राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी भी उन्हें चिंतित नहीं करती। भारत के गांवों में आजादी के बाद कैसा बदलाव हुआ? इतने...

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