जनसत्ता 31 मई, 2012: इसे ‘केला गणतंत्र’ कहें तो कई लोगों को आपत्ति हो सकती है। लेकिन दिशाहीन राजनीति और डोलती अर्थव्यवस्था के लिए ‘बनाना रिपब्लिक’ जैसे शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी लेखक ओ हेनरी ने 1904 में अपनी पुस्तक ‘कैबेज एंड किंग्स’ में किया था। ओ हेनरी 1896-97 में बैंक घोटाले के एक मामले में अमेरिका से गायब हो गए थे, और होंडुरास में शरण ली थी। उस दौरान मध्य अमेरिकी...
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देशभक्तों के काम!- हरिवंश
राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ खिलवाड़ अक्षम्य अपराध है. देश के साथ द्रोह भी. मामला चाहे अशोक स्तंभ का हो या मुंबई में ‘अमर जवान ज्योति’ तोड़ने का. इस कसौटी पर काटरूनिस्ट असीम त्रिवेदी भी गलत हैं. पर आज सार्वजनिक रूप से यह कहना कि ‘सत्यमेव जयते’ की जगह ‘भ्रष्टमेव जयते’ के युग में देश है, कहां का अपराध है? या राष्ट्रदोह है? यह तो मौजूदा हालत का नग्न सच है. देश की कुल...
More »20 सितंबर को भारत बंद
नई दिल्ली : डीजल कीमतों में बढोतरी, खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति और सब्सिडीयुक्त घरेलू एलपीजी की संख्या सीमित करने के फैसलों के विरोध में भाजपा और गैर भाजपा विपक्षी दलों सहित सरकार को समर्थन दे रही सपा और जद-एस ने भी 20 सितंबर को राष्ट्रव्यापी हडताल का आज ऐलान किया. राजग के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि सरकार की नीतियों के खिलाफ 20 सितंबर...
More »एक मूर्खता से उठी आंधी- एम जे अकबर
सार्वजनिक जीवन में कौन-सा अपराध बड़ा है, भ्रष्टाचार या मूर्खता? इस सवाल का जवाब देने के लिए आप समय ले सकते हैं. अगर भ्रष्टाचार राजनीतिक मृत्युदंड होता, तो यूपीए कैबिनेट का अधिकांश हिस्सा 2009 के चुनावों में जीत हासिल नहीं करता. संभवत: भ्रष्टाचार का आकलन उसके फैलाव से किया जाता है. जब भ्रष्टाचार का स्नेहक बड़ी लूट में तब्दील हो जाता है, तब वोटर तय करता है कि अब बहुत हो...
More »यह नया कितना पुराना- कुमार प्रशांत
जनसत्ता 14 अगस्त, 2012: देश को नए मंत्री मिल गए हैं। देश की गहरी समस्याओं के जनक रहे पुराने लोग नई पोशाकों में आ खड़े हुए हैं। देखते हैं तो उनके हाथों में तलवारें भी वही बाबाआदम के जमाने की हैं- कागजी! सारे देश में सूखा पड़ा है और अभी अचानक बिजली चले जाने का नया रोग भी गहरा अंधेरा बनाने लगा है। इसे अगर एक प्रतीक से जोड़ कर...
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