SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 604

गंगा योजना बनाम विकास नीति - कृष्णदत्त पालीवाल

महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान में आती रहती है कि संदेह के अवसरों पर अंत:करण की आवाज को प्रमाण मानना चाहिए। ठीक बात है। लेकिन आत्म-बोध, ज्ञान-बोध दोनों के बीच संदेह झूल रहा है। यह संदेह संस्कृति रूपी चित्त की खेती को बर्बाद करने का जाल बिछा रहा है। विश्वास का अंत कर रहा है और संशय का हुदहुद सभी को ढहाए दे रहा है। भारतीय जन-मानस की...

More »

लोक से कटा गंगा-विमर्श -- अनिल चमड़िया

जनसत्ता 15 अक्तूबर, 2014: गंगा के बारे में जो धारणा भारतीय जन-मानस के बड़े हिस्से में सचेतन रूप से खड़ी की गई है, वह केवल धार्मिकता से जुड़ी है। वह धार्मिकता भी बेहद एकांगी है। इस पूरी धारणा ने मानवीय जीवन और खास तौर से समाज की सामूहिक चेतना को बुरी तरह से खंडित किया है। इसने प्रकृति के साथ जीवन के रिश्तों को समझने और उसे समृद्ध करने की...

More »

चीनी की कम होती मिठास - के सी त्यागी

जनसत्ता 14 अक्तूबर, 2014: महाराष्ट्र की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आत्महत्याओं का जिक्र करते हुए उनकी समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया है। उन्होंने अपनी चुनावी रैलियों में स्वीकार किया कि प्रतिवर्ष लगभग सैंतीस सौ किसान आत्महत्या कर रहे हैं, मगर दूसरी तरफ उन्होंने राज्य सरकारों द्वारा दिया जाने वाला (समर्थन मूल्य के अतिरिक्त) बोनस रोकने का फैसला किया है। केंद्रीय खाद्यमंत्री रामविलास पासवान ने...

More »

भारत में कोयला भंडार और खनन

सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 से 2011 के बीच हुए सभी 218 कोयला ब्लॉक आवंटनों को मनमाना और गैरकानूनी करार देते हुए, सरकारी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे चार ब्लॉकों को छोड़, अन्य 214 आवंटनों को रद्द कर दिया है. बीते 25 अगस्त को अदालत ने कहा था कि 14 जुलाई, 1993 के बाद से हुए कोल-ब्लॉक आवंटनों में दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ है और राष्ट्रीय संपत्ति गलत तरीके से...

More »

क्या गरीबी कभी खत्म हो सकती है?- लार्ड मेघनाद देसाई

लॉर्ड मेघनाद देसाई भारतीय मूल के ब्रिटिश अर्थशास्त्री और लेबर पार्टी से जुड़े राजनीतिज्ञ हैं. वह अर्थशास्त्र के विश्वविख्यात संस्थान, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रह चुके हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उनके 200 से ज्यादा लेख अकादमिक जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं. वह कई भारतीय व ब्रिटिश अखबारों के लिए नियमित स्तंभ लिखते हैं. 5 सितंबर 2014 को उन्होंने पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) में...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close