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औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा

वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। मुख्यधारा के समाजों से दूर रहने वाली इन जनजातियों को पुश्तैनी रूप से अपराधी मानते हुए उन्हें गैर-जमानती अपराध के दायरे में ला दिया गया। इन जनजातीय समुदायों में थे बावरिया, पारधी, कंजर, सांसी, बंजारा, गरासिया, सहरिया आदि। ये...

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नोबेल प्राप्त वैज्ञानिक ने कैम्ब्रिज में कहा- मांस को छोड़ अच्छी शिक्षा पर ध्यान दे भारत

भारतीय मूल के नोबेल विजेता वेंकटरमन रामाकृष्णन ने सलाह दी है कि भारत को "कौन किस तरह का माँस खाता है इस पर सांप्रदायिक वैमनस्य पालने" के बजाय अच्छी शिक्षा खासकर विज्ञान और तकनीक की, पर ध्यान देना चाहिए। ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में बोलेत हुए रामाकृष्णन ने कहा कि अगर भारत "नवोन्मेष, विज्ञान और तकनीक में अगर निवेश नहीं करेगा तो वो दौड़ में पीछे छूट जाएगा।" रामाकृष्णन ने...

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कौन थीं ‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश, जिनके तर्कवादी विचार ने बना दिये उनके दुश्मन?

बेंगलुरु : बेंगलुरु में मंगलवार रात ‘फायर ब्रांड' पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी. उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई. गौरी लंकेश की पहचान एक व्यवस्था विरोधी पत्रकार की थी, जो गरीबों और दलितों की हितैषी थीं. साथ ही उन्हें हिंदुत्वादी राजनीति का कट्टर विरोधी माना जाता था. कन्नड़ पत्रकारिता में कुछ महिला संपादकों में शामिल गौरी प्रखर कार्यकर्ता थीं जो नक्सल समर्थक थीं और वामपंथी विचारों...

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तीन तलाक पर कमजोर फैसला -- योगेन्द्र यादव

तीन तीन तलाक की प्रथा मानवीयता, संविधान और इस्लाम तीनों के विरुद्ध है. देर-सवेर तीन तलाक को खारिज होना ही था, सो हो गया. लेकिन, मुझे इस फैसले से तीन बड़ी उम्मीदें थीं. एक, इससे तीन तलाक ही नहीं, देश में तमाम महिला विरोधी धार्मिक-सामाजिक कुरीतियों को अमान्य करने का रास्ता खुलेगा. दो, इस बहाने मुस्लिम समाज में सुधार होगा और मुस्लिम अपने कठमुल्ला नेतृत्व से मुक्त होंग. तीन, कानूनी...

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तीन तलाक पर अच्छा फैसला-- भूपेन्द्र यादव

तीन तलाक पर आये फैसले को किसी संस्था या धार्मिक परंपरा विशेष के खिलाफ न मानकर एक प्रगतिशील कदम के रूप में देखना चाहिए, जो समाज के साधारण एवं वंचित वर्ग के प्रति निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का फैसला है. इस विषय पर मीडिया के सारे साधनों में बहस और चर्चा हुई है, जिसमें धार्मिक संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ साधारण जन और पीड़ित पक्षों ने भी बहस की है. यह...

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