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विश्व स्वास्थ्य दिवस: एक साफ, स्वस्थ विश्व के निर्माण का संकल्प

-जनपथ, भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के पैमाने पर ‘‘जन स्वास्थ्य’’ एक जरूरी मसला है। सार्वजनिक जन स्वास्थ्य के बिना किसी भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ और सुखी रहना नामुमकिन है। कोई व्यक्ति यदि महज धन सम्पत्ति के बदौलत यह सोचता है कि वह अच्छा स्वस्थ्य भी हासिल कर लेगा तो यह उसकी गलतफहमी है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) आज...

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इंटरव्यू- कृषि कानूनों को मोदी सरकार ने नाक का सवाल बनाया, बीजेपी को होगा 80 से ज्यादा सीटों का नुकसानः हनुमान बेनीवाल

-गांव कनेक्शन, ष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक और नागौर लोकसभा सीट से सांसद हनुमान बेनीवाल एक किसान नेता के तौर जाने जाते हैं। केन्द्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के विरोध में बेनीवाल ने एनडीए गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया। संसद की जिन तीन समितियों में शामिल थे, उनसे भी इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बेनीवाल शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन को सपोर्ट कर रहे हैं। उनका कहना है कि...

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कॉरपोरेट टैक्स दरों को घटाने के बावजूद भी कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए नियमित रूप से टैक्स छूट और प्रोत्साहन जारी

अक्सर यह मुख्यधारा के अर्थशास्त्रियों द्वारा तर्क दिया जाता है कि हर साल केंद्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है क्योंकि सरकार खाद्य और उर्वरक सब्सिडी पर खर्च करती है. पूरे बजट के साथ-साथ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के सापेक्ष इन दोनों सब्सिडी के डेटा का उपयोग अक्सर इस तर्क को बल देने के लिए किया जाता है कि आर्थिक के साथ ही साथ देश की पर्यावरणीय...

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केरल और लक्षद्वीप में शून्य तो राजस्थान में बढ़ी सिर्फ 1 रुपए मनरेगा मजदूरी

-गांव कनेक्शन,  केन्द्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए न्यूनतम मजदूरी की घोषणा कर दी है। 15 मार्च को ग्रामीण विकास मंत्रालय के नोटिफिकेशन के अनुसार केरल और लक्षद्वीप में एक भी पैसे की बढ़ोतरी नहीं की गई है जबकि राजस्थान में सिर्फ एक रुपए मनरेगा मजदूरी बढ़ाई गई है। राजस्थान में अब तक मनरेगा (NREGA) में अकुशल मजदूरों की मजदूरी 220...

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: क़ाफ़िला ये चल पड़ा है, अब न रुकने पाएगा...

-न्यूजक्लिक, तू बोलेगी, मुंह खोलेगी तब ही ये ज़माना बदलेगा... ये सच है कि महिलाओं ने बोलना शुरू किया तो ज़माना बदलने लगा। पितृसत्ता की ज़ंग खाई बीमार सोच की तबीयत में रवानी आने लगी। जिसे एक पीढ़ी नामुमकिन मानती रही उसे दूसरी पीढ़ी ने सिरे से खारिज कर दिया। ये सदी औरत की सदी है। जो देश में नई इबारत गढ़ रही है। औरतों के संघर्ष का इतिहास बहुत लम्बा...

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