महात्मा गांधी का सपना था कि गांव का शासन ग्रामीण चलायें और अपनी प्राथमिकताएं भी वे खुद ही तय करें. हालांकि अब तक यह सपना पूरी तरह सार्थक तो नहीं हो पाया है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि पंचायत चुनाव के बाद इसकी संभावनाएं काफी प्रबल हुईं हैं. गांधीजी के सपने को साकार करने की ओर एक कदम के रूप में महिला ग्रामसभा को देखा जा सकता है. क्या...
More »SEARCH RESULT
फायदा या नुकसान: घरेलू बचत का सिकुड़ता दायरा चिंताजनक
आघात - केंद्र ने अप्रैल 2013 से डाकघर बचत तथा पब्लिक प्रॉविडेंट फंड जैसी बचत योजनाओं में देय ब्याज में 0.10 फीसदी कर दी। हाल ही कर्मचारी भविष्य निधि फंड में 0.25 की वृद्धि की गई है जो निम्न और मध्यवर्गीय नौकरीपेशा वर्ग के लिए मामूली राहत वाली बात कही जा सकती है। भारतीय समाज के ये दो वर्ग ऐसे होते हैं...
More »शहरी भारत में बढ़ रही है निशक्तजन की तादाद
कागज पर परिभाषा बदल दो, सच्चाई बदल जायेगी ! गरीबों की संख्या कम बताने के लिए के लिए योजना आयोग इस साल कुछ ऐसा ही करतब दिखायाथा!निशक्तजन(Disabled) की परिभाषा बदलकर सच्चाई बदलने का कुछ ऐसा ही करतब 2011 की जनगणना में भी दिखाया गया है। निशक्तजनों की संख्या के बारे में 2011 की जनगणना के नये आंकड़े हाल ही में जारी किए गए हैं और इन आंकड़ों के मुताबिक निशक्तजनों की...
More »एचआईवी के खिलाफ एक गांव की जंग- अन्नु आनंद
कोल्हापुर का नाम कोल्हापुरी जूतियों के लिए जाना जाता है. व्यापारी जगत में यह चीनी की मिलों के लिए भी मशहूर है. फिल्मों में रुचि रखने वाले इसे पद्मिनी कोल्हापुरी के नाम से भी पहचानते हैं. लेकिन महाराष्ट्र के कोल्हापुर नाम का यह जिला अब जन-भागीदारी के अनूठे प्रयास के लिए समूचे देश में एक नयी मिसाल कायम कर रहा है. एचआइवी के खिलाफ जंग में विभिन्न समुदायों ने मिलकर यहां ऐसे प्रयासों...
More »आदिवासी विमर्श का दायरा- अनिल चमड़िया
जनसत्ता 25 नवंबर, 2013 : बढ़ता कृषक असंतोष, छिटपुट विस्फोटों से प्रकट हो रहा है- भू-स्वामियों के बढ़ते शोषण और दमन के विरोध में सशस्त्र प्रतिरोध की तरफ बढ़ता हुआ यह घटनाचक्र पूरे देश के पैमाने पर, विशेषकर आदिवासियों की तरफ फैलता जा रहा है।’ क्या शीर्षक (आदिवासी: शोषितों में सबसे बुरी स्थिति) समेत इन पंक्तियों के बारे में यह ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कब लिखी गई होंगी?...
More »