किसानों को हर साल खेती में भारी क्षति का सामना करना पड़ता है. समय पर बारिश नहीं होने से किसानों की मेहनत तो बेकार हो ही जाती है साथ ही खेतों में डाले गये बीज तथा खाद भी बरबाद हो जाते हैं. किसानों को अब यह सलाह दी जाती है कि वे वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान दें. इसी सिलसिले में पंचायतनामा संवाददाता ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में मौसम विज्ञान...
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निर्मल गंगा की सार्थक धारा- जैको वल्विस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सबसे पवित्र नदी को साफ करने का वादा किया है। वाराणसी से चुनाव लडम्कर एक तरह से उन्होंने इस असंभव से लगने वाले मुद्दे पर अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा दिया। गंगा की जो हालत है, वह भारत के अंतर्विरोधों का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक तरफ तो देश की इस सबसे पावन नदी की लोग पूजा करते हैं, इसके जल को सबसे पवित्र...
More »विकास के मॉडल का सवाल- के पी सिंह
जनसत्ता 22 मई, 2014 : चुनाव प्रचार के दौरान विकास के बहुतेरे मॉडल विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की ओर से प्रस्तुत किए गए। इससे पहले के चुनावों में भी विकास का कोई न कोई खाका पेश करके राजनीतिक दल मतदाताओं का विश्वास हासिल करते रहे हैं। इसके बावजूद ग्रामीण और दुर्गम पहाड़ी अंचलों में अधिकतर नागरिक आज भी स्वच्छ पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे...
More »नयी सरकार के सामने गांव के पुराने मुद्दे- पंचायतनामा डेस्क
16 मई को देश में लोकसभा चुनाव का परिणाम आ गया है. देश को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार मिलने जा रही है. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर राजनीतिक हमले के साथ विकास के मुद्दे को फोकस किया. उन्होंने कृषि, ग्रामीण रोजगार, शौचालय जैसे अहम मुद्दों की चर्चा प्रचार अभियान के दौरान की. हम अपनी आमुख कथा में गांव-पंचायत...
More »कहानी कुछ जैविक ग्रामों की- अमृतांज इंदीवर
अंधाधुंध पेस्टीसाइड्स व फर्टिलाइजर के उपयोग से मिट्टी, पानी व हवा ऊसर होते जा रही है। जहां किसान पहले खेतों में नाइट्रोजन की मात्रा 3-5 किलो प्रति कट्ठा के हिसाब से देते थे, वहीं आज 10-20 किलो प्रति कट्ठा के हिसाब से दिया जा रहा है। इसकी वजह से धरती पर ग्रीन हाउस बन रहा है और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे बढ़ रहे हैं। यह परिस्थितिकीय चक्र को प्रभावित कर रहा है। परिणामस्वरूप खेत बंजर हो रहे हैं,...
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